पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१३१

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शाब्दी व्यंजन १३ व्यक्ति जहाँ व्यक्ति से अर्थात् स्त्रीलिंग आदि से एक अर्थ का निर्णय होता है, वहाँ व्यक्ति है। जैसे- एरी मेरी बीर जैसे तैसे इन ऑखिन ते, कढ़िगौ अबीर पै अहीर तो कड़े नहीं । पद्माकर ___ इसमें 'बीर' शब्द के अर्थ भाई, सखी, पति, योद्धा आदि अनेक हैं ; पर 'मेरी' स्त्रीलिग से यहाँ सखी का ही बोध होता है । . लक्षणामूला शाब्दी व्यञ्जना जिस प्रयोजन के लिए लक्षणा का आश्रय लिया जाता है वह प्रयोजन जिस शक्ति द्वारा प्रतीत होता है उसे लक्षणामूला शाब्दी व्यञ्जना कहते हैं। जैसे- कूकती बलिया कानन लौ नहि जाति सह्यो तिन की सुअवाजें। भूमिते लैके अकाश लौ फूले पलास दवानल की छवि छाजें। आये बसंत नहीं घर कंत लगी सब अन्त को होने इलाजें। बैठी रही हम हू हिय हारि कहा लगि टारिये हाथन गाजें। -मतिराम इस कविता में कवि ने वसंतागम पर किसी वियोगनी नायिका के विरह का चित्र खींचा है। वह दुःख-निरोध के सभी उपायों से ऊब गयी है और बचने के यत्न करने को 'हाथों से गाजे रोकना समझ बैठी है। यहाँ हाथों से वन रोकना कहने से विरह ज्वाला के उपशामक नलिनीदल, नवपल्लव, उशीरलेप आदि तुच्छ साधनों से तीव कामपड़ा का अपहरण रूप अर्थ की असम्भवता सूचित है । यहाँ 'गाजें' शब्द 'दुर्दमे मदन वेदना' रूप अथ को लक्षित करता है । यहाँ शुद्धा, साध्यवसाना, प्रयोजनवतो लक्षण-लक्षणा है। इससे वेदना को अतिशयता व्यंग्य है। बारहवीं छाया प्रार्थी व्यञ्जना जो शब्दशक्ति १ वक्ता ( कहनेवाला), २ बोद्धव्य ( जिससे बात की जाय ), ३ वाक्य, ४ अन्य-संनिधि, ५ वाच्य (वक्तव्य ), ६ प्रस्ताव ( प्रकरण ), ७ देश, ८ काल, ६ काकु ( कण्ठध्वनि), १० चेष्टा आदि की विशेषता के कारण व्यंग्यार्थ की प्रतीति कराती है वह प्रार्थी व्यञ्जना कही जाती है ।