पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१२७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शब्दी व्यंजना लक्षण-लक्षणा में कभी-कभी अभिधेयार्थ एकदम पलट आता है । पाठकों को ऐसे शब्दों का व्यवहार कुछ विलक्षण प्रतीत होगा। जैसे, 'विश्वासी' शब्द को हो लीजिये । इसका अपभ्रश रूप है 'बिसवामी' । अर्थ होता है 'विश्वासयोग्य' वा 'विश्वासपात्र'। ___ अरे मलिछ विसवासी देवा, कित में आइ कोन्हि तोरि सेवा-पद्मावत यहां विश्वासघाती के अथ मे विसवासी शब्द लाया गया है । कब हूँ वा 'बिसासी' सुजान के आँगन मों अँसुवाल को लै बरसो।-धनानन्द यहां बिसासी' उसी 'विश्वास' के अपभ्रश रूप मे होकर ब्रजभाषा में विश्वासघाती के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। यह प्रयोग वैसा ही है जैसा 'मूर्ख' को वृहस्पति भी कहें तो उसका अर्थ मूर्ख ही होगा। एक और- यशोधरा-किन्तु कोई अनय करे तो हम क्यों करें। राहुल-और नही माथे पर क्या हम उसे धरें?-मैथलीशरण इसका यह विपरीत अर्थ होता है कि हम अन्याय को सिर-माथे पर नही पर सकते । मुख्यार्थ की बाधा है । लक्षणा से उक्त अथं होता है। मुख्यार्थ छोड़ लक्ष्यार्थ का ग्रहण है । इससे यहाँ लक्षणलक्षणा है । (ग) व्यंजना ग्यारहवीं छाया शाब्दी व्यंजना कह आये हैं कि शाब्दी व्यजना के दो भेद होते हैं-एक अभिधामूला और दूसरी लक्षणामूला। अभिधामूला शाब्दी व्यंजना संयोग आदि के द्वारा अनेकार्थ शब्द के प्रकृतोपयोगी एकार्थ के नियंत्रित हो जाने पर जिस शक्ति द्वारा अन्यार्थ का ज्ञान होता है वह अभिधामूला शाब्दी व्यंजना है। मुखर मनोहर श्याम रंग बरसत मुद अनुरूप । झूमत मतवारो झमकि बनमाली. रसरूप ॥-प्राचीन यहाँ 'वनमाली' शब्द मेघ और श्रीकृष्ण दोनों का बोधक है। इसमें एक अर्थ के साथ दूसरे अथं का भी बोध हो जाता है।