गौसी और शुद्धा 'काव्यप्रकाश के अनुसार प्रयोजनवती लक्षणा के छह भेद होते हैं, जो यहाँ रेखाचित्र में दिखलाये गये हैं। प्रयोजनवती लक्षणा गौण शुद्धा १सारोपा ध्यवसाना १उपादानलक्षणा २ लक्षणलक्षणा ३ सारोपा ४ साध्यवसाना 'साहित्यदर्पण' के अनुसार इसके और भी अनेक भेद होते हैं। पाँचवीं छाया गौणी और शुद्धा गौणी लक्षणा उसे कहते हैं जिसमें सादृश्य सम्बन्ध से अर्थात् समान गुण वा धर्म के कारण लक्ष्यार्थ का ग्रहण किया जाय । जैसे, है करती दुख दूर सभी उनके मुखपंकज की सुघराई। याद नही रहती दुख की लख के उसकी मुखचन्द्र जुन्हाई ॥ -गोपालशरण सिह चन्द्र और पंकज मुख से भिन्न हैं। दोनों एक नहीं हो सकते । इससे इनमें मुख्यार्थ की बाधा है। पर दोनों में गुण को समानता है। मुख देखने से वैसा हो आनन्द आता है, श्राह्लाद होता है, हृदय में शीतलता पाती है जैसे पंकज और चन्द्रमा के देखने से । इस गुणसाम्य से ही मुख को चन्द्रमा और पंकज मान लिया गया है। यहाँ दो भिन्न-भन्न पदार्थों में अत्यन्त सादृश्य होने से भिन्नता की प्रतीति नहीं होती । इससे यह सादृश्य ही गौणी लक्षणा का कारण है। शुद्धा लक्षणा शुद्धा लक्षणा उसे कहते है जिसमें सादृश्य सम्बन्ध के अतिरिक्त अन्य सम्बन्ध से लक्ष्याथं का बोध होता है। जैसे, अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी। आँचल में है दूध और आँखों में पानी ॥-मैथिलीशरण
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