पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/११४

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काव्यदपण अभिधा-शक्ति द्वारा जिन वाचक वा शक्त शब्दों का अर्थ बोध होता है उन्हें क्रमशः रूद, यौगिक और योगरूढ़ कहते हैं। १. समूहशक्तिबोधक वा रूढ़ वह शब्द है जिसकी व्युत्पत्ति नहीं होती। ___ रूढ शब्द के प्रकृत-प्रत्यय-रूप अवयवों का या तो कुछ अर्थ ही नहीं हो सकता या होने पर भी संगत प्रतीत नहीं हो सकता । जैसे-पेड़, पौधा, घड़ा, घोड़ा आदि। २. अङ्ग-शक्ति-बोधक वा यौगिक शब्द वह है जिसमें प्रकृति और प्रत्यय का योग-सम्मिलन होकर अवयवार्थ-सहित समुदायार्थ की प्रतीति हो। ऐसे शब्दों से यौगिक अर्थ की हो प्रतीति होती है। जैसे, 'पाचक और 'भूपति' । 'पाचक' में 'पच' का अर्थ पकाना और 'श्रक' का अर्थ करनेवाला है। दोनों का सम्मिलित अर्थ 'पकानेवाला' होता है। 'भूपति' में 'भू' का अर्थ पृथ्वी और 'पति' का अर्थ मालिक है । किन्तु, एक साथ इनका अर्थ राजा होता है । ऐसे ही धनवान, पाठशाला, मिठाईवाला आदि शब्द हैं। ३. समूहाङ्गशक्तिबोधक या योगरूढ़ शब्द वह है, जिसमें अंग-शक्ति और समूह-शक्ति का योग तथा रूढ़ि, दोनों का सम्मिश्रण हो। __ यौगिक शब्दों के समान अवयवार्थ रखते हुए योगरूढ़ किसी विशेष अर्थ का वाचक होता है । जैसे, जेहि सुमिरत सिधि होय, गणनायक करिवरवदन । इसमें 'गणनायक' केवल गणेश ही का बोधक है, अन्य किसी गणनेता का नहीं। यहाँ 'गण' तथा 'नायक' दोनों अपने पृथक् अर्थ भी रखते हैं। (ख) लक्षणा तीसरी छाया लक्षक शब्द जिस शब्द से मुख्यार्थ से भिन्न, लक्षणा-शक्ति द्वारा अन्य अर्थ लक्षित होता है उसे लझक वा लाक्षणिक शब्द और उसके अर्थ को लल्यार्थ कहते हैं। शद यहारोधित है और अर्थ में इसका स्वाभाविक निवास हैं। . किसी श्रीदमो को गया कहा जाय तो साधारण बोध का बालक देख-सुनकरें चाया जायगा। क्योंकि उसने 'मका' शब्द के अर्थ का एक पशु के रूप में परिचय