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द्वारा अभिव्यक्त करने के लिए ही रहती थीं। उन में प्रेम-पुजारिनों का होना असम्भव नहीं था। सूफी रबिया से पहले ही दक्षिण भारत की देवदासी अन्दल ने जिस कृष्ण-प्रेम का संगीत गाया था उस की आविष्कर्त्री अन्दल को ही मान लेने में मुझे तो सन्देह ही है। कृष्ण-प्रेम उस मन्दिर का सामूहिक भाव था, जिस की अनुभूति अन्दल ने भी की। ऐतिहासिक अनुक्रम के आधार पर यह कहा जा सकता है कि फारस में जिस सूफी धर्म का विकास हुआ था, उस पर काश्मीर के साधकों का बहुत कुछ प्रभाव था। यों तो एक दूसरे के साथ सम्पर्क में आने पर विचारों का थोड़ा-बहुत आदान-प्रदान होता ही है; किन्तु भारतीय रहस्यवाद ठीक मेसोपोटामिया से आया है, यह कहना वैसा ही है जैसा वेदों को 'सुमेरियन डॉकुमेन्ट' सिद्ध करने का प्रयास।

शैवों का अद्वैतवाद और उन का सामरस्य वाला रहस्य सम्प्रदाय, वैष्णवों का माधुर्य भाव और उन के प्रेम का रहस्य तथा कामकला की सौन्दर्य-उपासना आदि का उद्‌गम वेदों और उपनिषदों के ऋषियों की वे साधना प्रणालियाँ हैं, जिन का उन्हों ने समय-समय पर अपने संघों में प्रचार किया था।

भारतीय विचारधारा में रहस्यवाद को स्थान न देने का एक मुख्य कारण है। ऐसे अलोचकों के मन में एक तरह की झुँझलाहट है। रहस्यवाद के आनन्द पथ को उन के कल्पित भारतीयोचित विवेक में सम्मिलित कर लेने से आदर्शवाद का ढाँचा ढीला पड़