इसीलिए कवित्व को आत्मा की अनुभूति कहते है। मननशक्ति और मनन से उत्पन्न हुई अथवा ग्रहण की गई निर्वचन करने की बाक्-शक्ति और इन के सामञ्जस्य को स्थिर करने वाली सजीवता अविज्ञात प्राणशक्ति ये तीनों आत्मा की मौलिक क्रियाएँ है।
मन संकल्प और विकल्पात्मक है। विकल्प विचार की परीक्षा करता है। तर्क-वितर्क कर लेने पर भी किसी संकल्पात्मक प्रेरणा के ही द्वारा जो सिद्धान्त बनता है वही शास्त्रीय व्यापार है। अनुभूतियों की परीक्षा करने के कारण और इसके द्वारा विश्लेषणात्मक होते-होते उसमें चारुत्य की, प्रेय की, कमी हो जाती है। शास्त्रसम्बन्धी ज्ञान को इसीलिए विज्ञान मान सकते हैं कि उसके मूल में परीक्षात्मक तर्को की प्ररेणा है और उनका कोटि-क्रम स्पष्ट रहता है।
काव्य आत्मा की संकल्पात्मक अनुभूति है, जिसका सम्बन्ध विश्लेषण, विकल्प या विज्ञान से नहीं है। वह एक श्रेय-मयी प्रेय रचनात्मक ज्ञान-धारा है। विश्लषरणात्मक तर्कों से और विकल्प के आरोप से मिलन न होने के कारण आत्मा की मनन क्रिया जो वाङमय रूप में अभिव्यक्त होती है वह निःसन्देह प्राणमयी और सत्य के उभय लक्षण प्रेय और श्रेय दोनों से परिपूर्ण होती है।
इसी कारण हमारे साहित्य का आरम्भ काव्यमय है। वह