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लेकर उनकी सूक्ष्मता और स्थूलता के विभेद से वर्गीकरण किया है जिसके अनुसार अत्यन्त सूक्ष्म, भावमय होने के कारण साहित्य को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। और सब से नीचे स्थापत्य का स्थान है क्योंकि उसका उपकरण अपेक्षाकृत स्थूल है। यहाँ स्मरण रखना चाहिए कि यह विभाजन व्यावहारिक है और इन कलाओं की वास्तविक उच्चता या नीचता का परिचायक नहीं। काव्य भी निम्न कोटि का हो सकता है। सुन्दर मूर्त्ति उससे कहीं श्रेष्ठ कलावस्तु मानी जा सकती है हीगेल का प्रयोजन इतना ही है कि और सब बातें बराबर हों तो काव्य का स्थान उसके सुक्ष्मतर उपकरण के कारण सर्वोच्च होगा और उसके नीचे क्रमशः संगीत, चित्र, मूर्त्ति और स्थापत्य कलाएँ होंगी। कलाओं के उत्कर्ष-अपकर्ष की तुलना यहाँ नहीं हैं। वह तो एक-एक कलावस्तु की समीक्षा द्वारा ही हो सकती है। यहाँ तो केवल व्यावहारिक विभाग की चर्चा है। इस सम्बन्ध में मतभेद के लिए विशेष स्थान मुझे नहीं दिखाई देता।

तीसरा प्रश्न काव्य साहित्य पर राष्ट्रीय संस्कृति की छाप का है। यह निश्चय है कि काव्य में राष्ट्र की स्यायी सांस्कृतिक प्रवृत्तियों का प्रचुर प्रभाव पड़ता है। प्रसादजी ने इसका एक सुन्दर उदाहरण भी दिया है:―'यह स्पष्ट देखा जाता है कि भारतीय साहित्य में पुरुष-विरह विरल है और विरहिणी का ही वर्णन अधिक है। इसका कारण है भारतीय दार्शनिक संस्कृति। पुरुष सर्वथा निर्लिप्त और स्वतंत्र है। प्रकृति या माया उसे प्रवृत्ति