पृष्ठ:काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध.pdf/१७८

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( १३९ )

उन का विरोध करना पड़ा। उन्हीं दिनों हिन्दी और बङ्गला के दो महाकवियों में परिचय भी हुआ। श्री हरिश्चन्द्र और श्री हेमचन्द्र ने हिन्दी और बँगला में आदान-प्रदान किया। हेमचन्द्र ने बहुत सी हिन्दी की प्राचीन कविताओं का अनुवाद किया और हरिश्चन्द्र ने "विद्या सुन्दर" आदि का अनुवाद किया।

जाति में जो धार्मिक और साम्प्रदायिक परिवर्तनों के स्तर आवरण स्वरूप बन जाते हैं, उन्हें हटा कर अपनी प्राचीन वास्तविकता को खोजने की चेष्टा भी साहित्य में तथ्यवाद की सहायता करती है। फलतः आरम्भिक साहसपूर्ण और विचित्रता से भरी आख्यायिकाओं के स्थान पर―जिन की घटनाएं राजकुमारों से ही सम्बद्ध होती थीं—मनुष्य के वास्तविक जीवन का साधारण चित्रण आरम्भ होता है। भारत के लिए उस समय दोनों ही वास्तविक थे—यहाँ के दरिद्र जनसाधारण और महाशक्तिशाली नरपति। किन्तु जनसाधारण और उन की लघुता के वास्तविक होने का एक रहस्य है। भारतीय नरेशों की उपस्थिति भारत के साम्राज्य को बचा नहीं सकी। फलतः उन की वास्तविक सत्ता में अविश्वास होना सकारण था। धार्मिक प्रवचनों ने पतन में और विवेकदम्भपूर्ण आडम्बरों ने अपराधों में कोई रुकावट नहीं डाली। तब राजसत्ता कृत्रिम और धार्मिक महत्व व्यर्थ हो गया और साधारण मनुष्य जिसे पहले लोग अकिंचन समझते थे वही क्षुद्रता में महान् दिखलाई पड़ने लगा। उस व्यापक दुःख संवलित