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'बिकेगा।'
'तो लिया जायगा।'
'ले लो।'
'गौ की एक कला से उसे लूँगा।'
'सोम राजा इस से अधिक मूल्य के योग्य हैं।'
'गौ भी कम महिमा वाली नहीं। इस में मट्ठा, दूध, घी सब है। अच्छा आठवाँ भाग ले लो।'
'नहीं सोम राजा अधिक मूल्यवान हैं।'
'तो चौथाई लो।'
'नहीं और मूल्य चाहिए।'
'अच्छा आधी ले लो।'
'अधिक मूल्य चाहिए।'
'अच्छा पूरी गौ ले लो भाई।'
'तब सोम राजा बिक गये; परन्तु और क्या दोगे? सोम का मूल्य समझ कर और कुछ दो।'
'स्वर्ण लो, कपड़े लो, छाग लो, गाय के जोड़े, बछड़े वाली गौ, जो चाहो सब दिया जायगा।' (यह मानो मूल्य से अधिक चाहने वाले को भुलावा देने के लिए अध्वर्यु कहता।)
फिर जब बेचने के लिए वह प्रस्तुत हो जाता, तब सोम विक्रेता को सोना दिखला कर ललचाते हुए निराश किया जाता। यह अभिनय कुछ काल तक चलता। (सम्मेत इति सोम विक्र