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इन पाठ्य काव्यों से नाट्य काव्य प्राचीन थे, ऐसा मानने में कोई आपत्ति नहीं हो सकती। भरत के नाट्य शास्त्र में अमृतमंथन और त्रिपुरदाह नाम के नाटकों का उल्लेख मिलता है। भाष्यकार पतञ्जलि ने कंस-बध और वलि-बंध नामक नाटकों का उल्लेख किया है। इन प्राचीन नाटकों की कोई प्रतिलिपि नहीं मिलती। सम्भव है कि अन्य प्राचीन साहित्य की तरह ये सब नाटक नटों को कण्ठस्थ रहे होंगे। कालिदास ने भी जिन भास, सौमिल्ल और कविपुत्र आदि नाटककारों का उल्लेख किया है, उन में से अभी केवल भास के ही नाटक मिले हैं, जिन्हें कुछ लोग ईसा से कई शताब्दी पहले का मानते हैं। नाटकों के सम्बन्ध में लोगों का यह कहना है कि उन के बीज वैदिक सम्वादों में मिलते हैं। वैदिक काल में भी अभिनय संभवतः बड़े-बड़े यज्ञों के अवसर पर होते रहे। एक छोटे से अभिनय का प्रसंग सोमयाग के अवसर पर आता है। इस में तीन पात्र होते थे―यजमान, सोम विक्रेता और अध्वर्यु। यह ठीक है कि यह याज्ञिक क्रिया है, किन्तु है अभिनय सी ही। क्योंकि सोम रसिक आत्मवादी इन्द्र के अनुयायी इस याग की योजना करते। सोम राजा का क्रय समारोह के साथ होता। सोम राजा के लिए पाँच बार, मोल-भाव किया जाता। सोम बेचने वाले प्रायः बनवासी होते। उन से मोल-भाव करने में पहले पूछा जाता:―

'सोम विक्रयो! सोम राजा बेचोगे?'