इन प्रतियों में चार ही जैसे-"बा० ब्रजबहादुर लाल और बा. रामबहादुर सिंह प्रतापगढ़, पं० शिवदत्त बाजपेयी मोहनलाल गंज लखनऊ तथा कुवर हरिदत्त सिंह संडीला की प्रतियाँ ही ऐसी थीं जिनमें कुछ लेखन-साम्यता थी, जो अन्यों में नहीं थी। इनके अतिरिक्त उन मुद्रित संग्रह-ग्रंथों का भी सहारा लेना पड़ा जिनमें दास जी के विविध छंद सुशोभित हैं और जिनके नाम ये हैं :
1. अलंकार मंजरी-सेठ कन्हैयालाल पोदार, मथुरा। ., अलंकार- रस्न--बा० बजरत्न दास, बनारस। ३. कविता कौमुदी-रामनरेश त्रिपाठी, प्रयाग। ४. का व्य कानन राजा चक्रधरसिंह, रायगढ़। ५. काव्य प्रभाकर-जगन्नाथ प्रसाद भानु बंबई। ६. छंदार्णव पिंगल-भिखारी दास (मु०)।७. नखसिख संग्रह मथुरा। ८. नखसिख हजारा-परमानंद सुहाने,लखनऊ। 8. नवीन संग्रह-हफीजुल्लाह खाँ, लखनऊ का छपा।१०. भारती भूषण-अर्जुनदास केडिया, बनारस। ११. मनोज मंजरी भाग-१, २, ३, पं० नकछेदी तिवारी, काशी की छपी। १२. रसकुसुमाकर-दहुमा साहिब अयोध्या। १३. रसमीमांसा-पं० रामचंद्र शुक्ल, काशी कीछपी। १४. श्रृंगार-निर्णय-भिखारीदास काशी का छपा। १५. शृंगार लतिका-सौरभ-द्विजदेव, अयोध्या स० जवाहरलाल चतुर्वेदी,। १६. शृंगार-संग्रह-सरदार कवि, लखनऊ का छपा। १७. शृंगार सुधारक--पं० मन्ना लाल, काशी का छपा। १८. षट्ऋतु हजारा-परमानंदसुहाने, लखनऊ का छपा। १६. सुंदरी तिनक-भारतेंदु वा० हरिश्चंद्र, बांकीपुर पटना का छपा। २०. सुंदरी सर्वस्व-पं० मन्नालाल, काशी का छपा। २१. सूक्ति सरोवर-ला० भगवान दीन, जबलपुर का छपा। २३. हफीजुल्लाह खाँ का हजारा, लखनऊ का छपा।"
भस्तु,संपादक इन सबका और विशेषकर “सेठ कन्हैयालाल पोहार,अर्जुन दास केडिया, बा. ब्रजरनदास एवं डा० नगेंद्र आदि का अत्यधिक ऋणी है,जिनके सहारे इन महानुभावों की मधुर-तिक्त टीका-टिप्पणी करते हुए भी काम्य-निर्णय जैसे दुस्तर महासागर से पार पा सका। अतएव :
प्रध-संपादन के समय कितनी ही ग्रंथ-भाषा संबंधी भड़चनें सामने आ जाती है,जो स्वाभाविक है। ये अड़चनें-भाषा,शब्दोच्चारण-वनि,क्रिया और कारकों-संबंधी होती है। जिसे काव्यनिर्णय की उल्लिखित प्रतियों ने और भी गहन बना दिया था। प्रतएव पासजी की भाषा के अनुरूप कुछ सिद्धांत स्थिर करने पड़े-उनकी अनुरणन-ध्वनि का सहारा लेना पड़ा। शब्दों, विधानों तथा