काव्य-निर्णय लक्षणामूला-शान्दी-व्यंजना का विषय है। जैसे उक्त उदाहरण-रूप सखी के विषय में विश्वासघात-सूचक व्यंग्य, नो लक्षणा का प्रयोजन रूप होते हुए भी लक्षणामूला-व्यंजना का विषय है और जो नायक के विषय में अपराध-सूचक व्यंग्यार्थ है, वह 'लक्ष्यसंभवा-भार्थी-व्यंजना का विषय है । अतएव यहाँ- दासजी कृत इस दोहे में, शान्दी-श्रार्थी व्यंजनाओं का विषय-विभाजन स्पष्ट है।" __"दासजो की यह उक्ति नायिका-भेदानुसार-'अन्य-सुरति-दुःखिता' वा 'अन्य-संभोग-दुःखिता' नायिका की उक्ति अपनी सखी के प्रति कही जायगी। अन्य-सुरति वा संभोग-दुःखिता उसे कहते हैं - जो नायक के पास ( उसे ) बुलाने को भेजी गई, पर उस (नायक) के साथ रमण कर लौटी हुई सखी को देखकर दुखित हो। यथा- "पीतँम-प्रीति-प्रतीत जो, और तिया-तँन पाइ। दुखित होइ सो दुःखिता, बरनत कवि-समुदाइ ॥" -म• म० (भजान ) पृ० ५०, अथवा- "निज पति-रति के चिह्न लखि, और तियन के अंग । 'अन्य-सुरति-दुखिता' सोई, जिहि दुख चढ़ अनंग॥" -र० प्र० ( रसलीन) पृ० ३६ स्वकीया की दशा-अनुसार 'अन्य-संभोग-दुःखिता' नायिका मानी जाती है जो कि मध्या और प्रोढ़ा का विशेष अंग है। कुछ कवियों ने इसे मुग्धा में वर्णन किया है, वह अग्राह्य है। कारण मुग्धा अधिक लज्जाशील है, अतः इस प्रकार कहने-सुनने में असमर्थ है। कुछ कषियों ने इसे परकीया और सामान्या में भी माना है। केशव और चिंतामणिजी ने इसका कथन-वर्णन नहीं किया है। दासजी ने अपने शृंगार-निर्णय में इसे 'विप्रलब्धा' नायिका के अंतर्गत माना है। यथा- "मिलन भास दे पति छली, और-हिं रत है जाइ। 'विप्रलब्ध' सो दु:खिता, पर-संभोग' सुभाइ ॥" -.नि. पृ० ६५, अन्य-संभोग-दुःखिता का उदाहरण 'हनुमान' कवि ने बड़ा सुदर प्रस्तुत किया है, जैसे-
पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/८६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।