पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/७७

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काव्य-निर्णय दासजी ने अपने नायिक-भेद रूप ग्रंथ 'शृगार-निर्णय में यह सवैया 'वचन- चतुर' नायक के और 'रसकुसुमाकर' के संग्रहकर्ता ने "विट्सखा" के उदाहरणों में संकलित किया है । विट् , यथा- "बहु नारिन को रसिक पै, सब पै प्रीति समान । बचन-क्रिया में प्रति चतुर, 'दच्छिन,' लच्छिन जाँन ॥" --, नि० (दास) पृ०५ और 'रसलीन' द्वारा कथन, यथा- "निपुन होइ सो सकल बिधि, सोई चतुर बखाँन । बचन-चतुर है एक अरु क्रिया-चतुर पुनि जॉन ॥" - र० प्र० (रसलीन) पृ० ६६ इन दोनों लक्षणों से यद्यपि बचन-चतुर नायक-लक्षण स्फुट नहीं होता, क्योंकि प्रथम 'दक्षिण' नायक-लक्षण को व्यक्त करता है-दूसरा चतुर नायक को, जो वचन-चतुर का पूर्व रूप हैं और विट् , यथा- "बिट जो जाँनत दूत-पॅन, कै सब कला मिलाइ ।" --२० प्र० (रसलीन) पृ० ८२ (६) अन्य संनिधि बिसेख ते बरनन 'दोहा' जथा- राज करौ गृह-काज दिन,- बीतत याही माँझ । ईठ लहों कल एक पल, नीठ निहार साँझ ॥ इहि निसि धाइ सताइ लै, सेद-खेद ते मोहिं । काल्हि लाल-हूँ के कहें, संग न स्वाऊँ' तोहिं ।।* ___ अस्य तिलक इहाँ (दोंनों उदाहरन में) उपपति सँमाप उपस्थित है, ताके कारन सुनाए ते 'परकीया' जाँनी जाति है-"संकेत की सूचना औ बिहार ब्यंग है।" . वि०-"वक्ता और संबोध्य (जिसको कहा जाय) के अतिरिक्त तीसरे व्यक्ति की समीपता के कारण व्यंग्यार्थ सूचित होना, अर्थात् किसी अन्य के निकट होने के पा०-१. (भा० जी०) छाँडो... (व्यं० म०) खाऊँ...। (सं० प्र०) खाबौं । "प्रतापगढ़ और महावीरप्रसाद मालवीय-द्वारा संपादित पुस्तकों में इन दोहों में उलट फेर है, अर्थात् प्रथम का स्थान नीचे-और द्वितीय का स्थान पूर्व का दोहा है ।

  • , व्यं० म० (ला० भ०) पृ० २३ ।