पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६४३

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६०८ काव्य-निर्णय अथ कपाट (किबार) बंध चित्रालंकार जथा-- भव-पति, भुव-पति, भक्ति-पति, सीता-पति रघुनाथ । जस-पति, रस-पति, राम-पति, राधा-पति जदुनाथ ॥ अस्य उदाहरन ' भ व | ति, | प स ज ६ 'भु व प |ति, | स र. 3 भक्त प | ति, प स रा. ४ सी ताप |ति, | प धा रा ९ . र घु ना | थ, | ना दु ज १० वि०-"दासजी का यह 'दोहा' छंद 'कपाट' बद्ध है ।. कपाट में तीन वस्तुएँ प्रधान होती हैं, जैसे-“पट (दो), 'दिला' (खाने, जिनकी संख्या ३ से पांच तक होती है ) और 'बेनी' (यह पट्ट-विशेष में ठड़े रूप से लगती है और दूसरे पट्ट को बाहर नहीं निकलने देती ) जिसे आप तथा-लिखित चित्र में अंक- १. २.३ में-१-३ पट्ट, २ बेनी द्वारा जान सकते हैं । अस्तु प्रत्येक पट्ट के दिला जिनकी संख्या यहां पांच है बीच के बेनी रूप अंक-२ के नीचे वाले पाँच खानों में लिखित-ति, ति, ति, ति और थ लोम-विलोम से अंक-१,२,३, ४, ५, ६, ७, ८,६ और १० अंको में विभक्त-"भव-पति', 'भुव-पति', सीता- पति, रघुना-'थ' बनकर छठवें अंकानुसार क्रमशः विलोभ रूप से-जसप-'ति', रस प-'ति', रास प-'ति', राधा-प-'ति', जदुना-'थ' रूप अाधा दोहा बन जाता है।" अथ अरध-गतागत चित्रालंकार लच्छन आधे - ही ते एक जह, उलटौ - सूधौ' एक। उलटेंसूधे द्व कवित, त्रि-विधि 'गतागत' टेक॥ पा०-१.(का०) (०) (प्र०) सीपी,...! (स० पु० प्र०) उलटे-सीधे...। (रा० पु०- का.) उलटे-सूत्रे...। २. (का०) (०) (प्र०) (सं० पु० प्र०) सीधै...!