पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६४१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६०६ काव्य-निर्णय अस्य उदाहरन- Mia अथ बृच्छ-बध चित्रालंकार जथा- आए' ब्रज-अवतंस, सु तिय रहि तकि निरखत छन । सुरपति को ढंग लाइ, सुर-तरु हि लिय निज धरि-पँन । सुसति भाँवती पबरि, सु छवि सरसत सुंदरि अति । सुँमन धरे बहुरे बाँन, सु लखि जीजति पच्छी जति ॥ केतिक, गुलाब, चंपक, दवन, मरूध, निवारी, छाज हीं। कोकिल, चकोर, खंजन, धबर, कुरर, परेवा, राज-हीं॥ वि० - “यह श्री दास कृत वृक्ष-बद्ध चित्रालंकार-युक्त छप्पय छंद है । इस वृक्ष में प्रथम स्थूल (जड़), अंक एक से सीधे मध्य के 'सु' अक्षर तक जाकर फिर 'सु' को प्रधान (शब्द का अग्रवण) मान कर क्रमशः सातों-तीन वाम भाग में, एक मध्य में और तीन दक्षिण भाग में स्थित डालियों के प्राधे-श्राधे चरणों को पढ़ते, फिर अंक ५ से चंद्राकार रूप तीन-तीन पत्रावलि में भूषित पा०-१. (का०) आयो...। २. (०) धेनु...!