पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६३८

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काव्य निर्णय घूमता हुआ अंक नौ की प्रथम मणिका 'माँ' के बाद प्रथम अंक स्थित मध्यवर्ती मणिका के 'नि' अक्षर पर समाप्त होगा।" अथ मुरज-बंध चित्रालंकार जथा- जैति जो जन तारिनी, कीर्ति' जो बिसतारनी। सो भजौ न तारिनी, छोम' जो जन तारनी ।। अस्य उदाहरन जो | जैन | तारनी कीति बिस तारनी सोभ मन तारनी छो भ | जो तारनी वि०-"मुरज संस्कृत-शब्द कोषों के अनुसार 'मृदंग का नाम-भेद यथा- मृदंगा मुरजाः भेदा०...(अ. को०-१, ५) कहा है । अस्तु उसके बजाने के गति-भेदानुसार यह पढ़ा जाता है। अथ छत्र-बंध चित्रालंकार जथा- दँनुज-निकर' दल-दलँन, दाँनि देवतँन अभैबर । सरद सरबरी नाथ, बदन सत मर्दैन - गरब - हर ॥ तरुन- कमल - दल नेन, सिर ललित पाँखें' सोभित । लखि* भोरो भो बीर, सु सँमुदित तन-मन लोभित ।। तँन सरस भीर प्रदनँनबते, मरकत-छबि-हर कांति-बर । ते 'दास' परॅम-सुख सदन सत',मन रहत यह रूप पर ।। पा०-१. (३०) कांति...। २. (का०) छो भजो... (स० पु० प्र०) सो भजौ जन तारिते'...तारिते । ३. (प्र०) दनुजनि-बर...। ४. (३०) (प्र०) पखे...। ५. (का०) लहि.... ६. (वे.) (प्र०) मों बीर...। ७. (का०) (३०) (प्र०) सुसम दुति...| 4. (का०) भीर प्रदन नवह ते, मरकत-छवि हर को तिबर । (३०) नीर प्रद न बहुते...। (प्र०) नीर प्रदन बहुते...! ६. (३०) (स'० पु० प्र०) ने...!