पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६३५

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काव्य-निर्णय लख्य दुबैन-दल-दलॅन', मध्य तूनीर जुगल तँन । चकित करन चर-नरन, बँनकबर सरसन लच्छन॥ कहि 'दास' काँम-जेता प्रबल, ते ता देवन भै-हरन । यह जाँनि जॉन भाँखें सदाँ, कमल-नयन-चरनँन सरन ॥ अस्य उदाहरन - 73 d किरक. 29. मान 39 वि०-,'दासजी कृत यह द्वितीय चक्र-बंध का उदाहरण, छह श्रारा और दो चंद्राकार (गोल) श्रावृत्तों में बँधा हुआ है। इसके पढ़ने का क्रम-अंकानुसार इस प्रकार है। १-'क'-र नरा'च' धुनु धर-'न', २-'न'-रक दा-र-नों निरंज-'न', ३–'ज' ( य )-दुकुल 'स'-रसिज भा-'न', ४-'न'-ईरित 'नगरौ गंज-'न', ५–'ल'-ख्य दुबै-'न' दल-दलैं-'न', ६–'म'-ध्य तूनी-'र' जुगल- तें-'न',७ (मध्य चक्र ) 'च'-कित क-'न चर-न' - रैनब-'न'क बरस'- स-२' लच्छेन, --(दूसरा चक्र श्रफ एक से ) 'क'-हि दास को-'म' जेता प्रब- 'ल', तेता देब'न' भै-हरन, ६-(अंक तीन के 'य' (ज) से ) 'य'-ह नानि पा०-१. (का०) (प्र०)...दरन"(0) लक्ख दुधन-दल-दरन...। २. (का०) (प्र०) सरस दर लच्छन । (३०) (सं० पु० प्र०) सरस दरस न । ३. (वे) नेता