पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६३२

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काव्य-निर्णय ५६७ अस्य उदाहरन जथा- के मनिवे कह सुख माधुरी > - - तारें क ई जुग नेनॅन तार कसौ AVI लि की केस मनोधनसा ल समान 15AppBER LA ( अथ चंद-बंध चित्रालंकार जथा- रहे सदाँ रच्छाहि में, रमाँनाथ रैनधीर । आँनों दास्यौ ध्यान में, धरें हाथ-पँन-तीर ॥ अस्य उदाहरन है स दाँ धीन रहा हि मैं Mein पा०-१. (का०) (३०) (प्र०) मानहुँ...। २. (३०) दासो...।