पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६२९

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५६४ काव्य-निर्णय "नोंने - नेनो - नेन में, नौ ने नुनी न नून । नानानन ने ना ननें, नाना नेना नून ॥" ये एक-एक अक्षर-द्वारा निर्मित उदाहरण हैं। श्री केशव-कृत छन्बीस अक्षर- संयुक्त उदाहरण भी दर्शनीय है, यथा - "चोरी माखन दूध घ्यौ, इंदत हठि गोपाल । डरत न जल-थल भटकि फिरि, मगरत छबि सों लाल ॥" यहाँ कवर्गादि-क, ख, ग, घ, च, छ, ज झ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, र, ल, स और ह, छब्बीस अक्षरों-व्यंजनों का प्रयोग किया गया है। अस्तु, दासजी ने यहां तक "वर्ण चित्रालंकारों" का और श्रागे "लेखनी- चित्रालंकारों (जिनका लिखने पर-हो बोध हो सके) का कथन किया है।" अथ लेखनी-चित्रालंकार बरनन जथा- खरग, कमल, कंकॅन, डमरू, चंद, चक्र, धेनु, हार । मुरज, छत्र-जुत बंध बहु, परबत, वृच्छ किबार ॥ बिबिध गतागत, मंत्र-गति, त्रिपद, अस्व-गति जॉन । बिमुख, सरबतोमुख बौहौरि, कामधेनु उर - भान ।। अच्छर-गुपत समेत हैं, लेखिन-चित्र अपार । बरनॅन-पंथ बताइ मैं, दीन्हें मति - अनुसार ।। वि०-"दासजी ने जैसा ऊपर लिखा गया है, पूर्व में वर्ण-चित्रालंकार कह कर अब "लेखनी-चित्रालंकार" कहे हैं। ये लेखनी-चित्रालंकार-खड्ग, कमल, कंकण, डमरू, चंद्र, चक्र, धनुष, हार ( श्राभूषण ), मुरज, छत्र (छाता), पर्वत, वृक्ष, कपाट, गतागत (उलटा-सीधा), मंत्र-गति, त्रिपदि (तीन पादों से-ही चौथा पाद बनने वाला ), अश्व-गति (घोड़े की तरह चपल-गति वाला ), सुमुख या विमुख, सर्वतोमुख ( अनेक प्रकार से बनने वाला ), कामधेनु (एक से अधिक छंद बनाने वाला-इच्छित छंद निर्माता), चरण-गुप्त और मध्याक्षरी-लुप्तादि कथन करने के बाद चित्रालंकर की उसके विभेदों के सहित संख्या बतलायी है। संस्कृत और ब्रजभाषा के साहित्य-ग्रंथों में इनके अतिरिक्त और भी अनेक चित्रकाव्य- पा०-१. (का०) (३०) के वार...। २. (का०) (३०) (प्र०) दीन्हों...।