पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६२६

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काव्य-निर्णय ५६१ तन-सचॅन-सजल-जलधर-बरन, जगत-धबल जस बस करन। दस-बदन दरॅन अमरन' बरन, दसरथ-तनय चरनन -सरन॥ वि०-“दासजी निर्मित इस छप्पय-छंद में संपूर्ण वर्ण मात्रा-रहित हैं। अतएव यह अमत्त-मात्रा-रहित का उदाहरण है। संस्कृत में इसे "श्रमात्रिक" कहा गया है।" अथ निराष्ठामत्त लच्छन जथा- पढ़त न लागै अधर मौत होइ प्रमत्ता बर्न । ताहि 'निरोष्ठामत्त' कहि, कहें" सुकवि मँन-हर्न । अस्य उदाहरन जथा- कहत रहत जस खलक सरद-सस-धरँन झलक-तैन । रजत अचल धर सजत, कनक-धंन नगन सकल गँन ॥ जल अचरत' घुन सतन हरख नगँन घर सरसत । हतँन अनि' गँन' जतन करत ॐन दरसन दरसत ।। जल अनघ जरद अलकन लसत, नयन अनल घर गरल-गर। गन-दरद दरन असरॅन-सरन, जय-जय-जय अघ-हरन हर ॥ वि०- “दास जी वर्णित यह "निरोष्ठामत्त'-जिसके पढ़ने में अधरों का स्पर्श न हो और मात्रा-रहित हो का लक्षण और उदाहरण है। यह श्रमा- त्रिक (मात्रा-हीन) है और जैसा दासजी का लक्षण (मत) है, इसके उच्चारण में श्रोष्ठी का आपस में स्पर्श नहीं होता।" अथ अजीह (जिहा के बिना) को लच्छन यथा-- जिते बन 'अ'-'क' बर्ग तित, और न आबै कोइ । ताहि 'भजीह' बखाँन-हीं, जिभ्या-चलित न होइ ।। अस्य उदाहरन जथा- खाइ है घोष, अघाइहै हीम, गहा "गहें गीथ प्रहै कहा खंगा। हे है कही को है खै-खै से गेह के, गाहक खेह के खेह है अंगा॥ पा०-१. (३०) सव"। २ (सं० पु० प्र०) प्रौढर ढरॅन"। ३. (का०) (३०) (प्र.) चरन"। ४. (का०) (३०) (प्र०) अरु, | ५. (प्र०) बरनत कबि मन.६.(स० पु० प्र०) चैन । ७. (का०) (३०) अरचत | म. (५०) सनत | E. (वे.) अनग"। १०. ( स०- पु०प्र०) |न"। ११. (३०) अन घर जरद अनकन"। १२. (का०) (३०) (प्र०) अजित"। १३. (का०) (३०) (प्र०) जिला । १४. (वे'०) पाई है । १५. ( सं०पु०प्र० ) गह गाहेगी गीमः । १६. (सं०पु०प्र०) है-है कहा की कहा कहों खै-खे, ए गाहक...।

  • भारती भूषण (के०) पृ०-४६ ।