काव्य-निर्णय ५८१ वि०-"यहाँ दासजी ने "नाग-पास" चित्रालंकार-द्वारा "चंद क्या, श्याम, कोन, क्षत्रियों का गुण क्या, संबत को पारसी लोग क्या कहते हैं, संसार में क्या रह जाता है, कुवेर का वाहन क्या और राजा क्या चाहा करते हैं-इत्यादि प्रश्नों का उत्तर "नाग-पास" युक्त शब्दों में एक-एक वर्ण के अंतर से, अंत में संपूर्ण पद-"सरस जैन" से, जैसा ऊपर चित्र में दिया गया है-सस, रस, रज, सन, फिर उन्हें ही उलट कर जस, जन और फिर “सरस-जॅन" द्वारा दिया गया है । जैसे चंद को क्या कहते हैं-सस (शशि), स्याँम ( काला ) कोन–'रस' (शृगार-रस ), क्षत्रियों का गुण क्या-'रज' ( रजोगुण ), फारस-वासी संबत को क्या कहते हैं-'सन', संसार में क्या रहता है-'जस,' कुवेर का वाहन कोन -'जन, राजा किसे चाहता है-"सरस-जॅन" = सुंदर हृदय वाले नरों को ।" कँम समस्त-व्यस्त लच्छन जथा- इक-इक बरँन बढ़ाइ' के, म ते लेहु समस्त । यहु 'प्रस्नोत्तर' जॉनिऐं, है सँमस्त-कम-ब्यस्त ।। अस्य उदाहरन जथा- कोंन बिकल्पी बर्न, कहा बिचारत गँनक-गँन । हरि है के दुख-हर्न, काहि बचायौ प्रसत-छन ॥ कै वा' प्रभु औतार, क्यों वारें राई-लबैन । कोंन सिद्धि-दावार, 'दास' कह्यौ-"बान-बदन" ॥ अस्य तिलक इहाँ म सों--"बा, थार, बारन, बार नब, बार न बद मौरु बारन- बदन कहि एक ही पद सों समस्त के म सों उत्तर दिये । वि०-"अर्थात् विकल्प करने वाला वर्ण को न-सा-'वा', गणक (ज्योतिषी) गण (समूह ) क्या विचारते हैं-बार (दिन ), दुःख-हरण करने वाले हरि ने किसे ग्रसते हुए बचाया- 'बारन' (हाथी ) को, भगवान ने कितनी बार अवतार लिया-"बार नब" (नौ बार ), राई-लवण ( नोन ) क्यों उतारा जाता है- वारन-बद ( दुःख हटाने के लिये) और सिद्धियो का देने वाला कोन- बारन-बदन= श्रीगणेश इत्यादि से दासजी ने सबके उत्तर दिये हैं।" पा०-१, (का० )( ० )(३०) बढ़ावते...| २. (का०) (३०) (प्र०) सक्रम समस्त न्यस्त । ३. ( का० ) (प्र.) कवन...। ४. ( का० ) वो...। ५. (का०) (३०)(प्र.) कबन...।
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