काव्य-निर्णय ५५५ तृतीय जॅमक को उदाहरन जथा- छिपति' छिपाई-री छिपाई-गन सोर तू , छिपाई क्यों सहेली डाँ छिपाई ज्यों दगति है। सुखद निकेत की या केतकी लखे ते पोर, केत की हिए में पीर केतको जगति है। लखिके ससंक होति निपटै ससंक 'दास', ____ संकर में साबकास संकर भगति है। सरसी-सुमॅन-सेज सरसी सुहाई सरसीरुह- बयारि सीरी सर - सी लगति है । चतुर्थ उदाहरन जॅमक को जथा- अरी, सीपरी होंन कों, ठरो कोठरी ना हि । जरी गूजरी जाति है, घरी द्व' घरी माँ हि ।। पाँचमों उदाहरन जॅमक को जथा- चैत सरबरी में चलो, सरब सरबरी स्याम । सरब रीति है सरबरी, लखि परि है परनाम ॥ छठौ उदाहरन जॅमक को जथा- मुकत बिराजत नाक में, मिलि बेसर सुख-माँ हिं। मुकत' बिराजत नाक में, मिलिबे-सर-सुख माँहिं ।। अथ सिंघावलोकन-लच्छन जथा- चरन अंत और आदि के , जॅमक कुडलित होइ । सिंघ-बिलोकनि' है। बहै, मुकतक-पद-प्रस सोइ ।। वि०-"जहाँ पद का श्रादि और अंत चरण यमक-समान कुंडलित हो वहाँ "सिंहावलोकन" माना जायगा।" _____ संस्कृत-रीति ग्रंथों में इस 'सिंहावलोकन' को "मुक्त-पद-ग्राह्य-यमक" कहा गया है । अर्थात् जहाँ प्रथम चरण के अंत का शब्द दूसरे चरण के श्रादि में ___पा०-१. (का०) (३०) प्र०) छपती...। २. (वे.) (स० पु० प्र०) छपाइ के भकेली या...। ३. (का०)(वे.) (प्र०) मीन...I ( पु० प्र०) पीर...। ४. (का०) (३०) (प्र०) होती...। ५. (३०) ढरी...1 ६. ( का० ) (३०) (प्र०) ( स० पु० प्र०) दू...। ७ (स० पु० प्र०) चली...। . (३०) नकै...। (स० पु० प्र०) तकै...। ६. ( स० पुं० प्र.) सरब रीति है सरबरी, लखि वेसरि सुखमाहिं । १०. (३०)पद... ११. (३०) है है...।
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