पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५८०

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काव्य-निर्णय ५४५ संस्कृत-अलंकार-प्रथों में "वृत्ति-गत अनेक वर्षों की अथवा एक वर्ण की अधिकवार श्रावृत्ति किये जाने को "वृत्यानुप्रास" का विषय माना गया है, जैसा कि दासजी ने लिखा है। बात तो यह है कि 'रसों के अनुकूल वर्गों के प्रयोग किये जाने के कुछ नियम हैं, जो संस्कृताचार्यों ने कहे हैं । इसलिये ऐसी नियम-बद्ध रचना को वहाँ "वृत्ति" कहा गया है। ये वृत्ति-"उपनागरिका, परुषा" और "कोमला" नाम से तीन प्रकार की होती है, जिसका कथन आगे किया गया है । अस्तु, इन तीनों वृत्तियों के अनुसार इन प्राचार्य-वर्गों ने इस 'वृत्यानुप्रास' के भी तीन भेदों का अपने - अपने शास्त्र-ग्रंथों में वर्णन किया है । अतएव "एक वा अनेक वर्णों की वृत्तियों के अनुकुल अनेक बार केवल स्वरूप से, अथवा स्वरूप और क्रम दोनों से श्रावृत्ति होने पर यह अनुप्रास बनता है । यहाँ यह श्रावश्यक नहीं कि वर्ण क्रम से ही श्रावें, फिर भी उनमें क्रम हो तो बहुत-ही अच्छा है-सुदर है।" दासजी ने इस उभय प्रकार - वृत्यानुप्रास के-"श्रादिवर्ण एक की अनेक वार, अादिवर्ण अनेक की अनेक बार, अंतवर्ण एक की अनेक बार और अंतवर्ण अनेक की अनेक बार श्रावृत्ति होने पर चार प्रकार का मानते हुए इन चारों के उदाहरण दिये हैं, यथा- प्रथम आदिवन एक की अनेकवार आवृत्ति को उदाहरन- बलि, बलि गई बारिजात से बन पर, बंसी - ताँन बँघि गई बिधि गई बाँनी में । बहरे बिलोचन' बिसूरि के बिलोकति, बिसारी सुधि-बुधि बाबरी-लों बिललाँनी में । बरुनी बिमा को बारुनी में है बिमोहित, बिसेस बिंबाधर में बिगोई बुद्धि रॉनी में। बरजि - बरजि बिलखानी बूंद पाली, बनमाली की बिकास विहँसन में बिकॉनी में । द्वितीय श्रादि बर्न अनेक की अनेकबार श्रावृत्ति को उदाहरन- पेंड-पेंड पै चकित चख, चितवति मो-चितहारि। ... - गई गागरी गेह ले, नई नागरी नारि ॥ पा०-१. (प्र०) बड़े-बड़े लोचन बिसारि' के बिलोकति । २. (३०) सुमोहित...!