पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५७५

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४० काव्य-निर्णय प्रथम उदाहरन स्लेस दीरघ सैंमास जथा-- रघुकुल-सरसीरुह बिपल, सुखद-भानु-पद चारु । हृदै-ऑनि हँनि कॉम-मद, कोह-मोह-परिबारु ।। द्वितीय उदाहरन स्लेस मध्यम सँमास जथा- जदुकुल-रंजन दीन-दुख, भंजन जॅन-सुख दान । कृपा-बारिधर प्रभु करौ, कृपा मापनों जॉन ॥ __तृतीय उदाहरन स्लेस लघु समास जथा - लखि-लखि सखि, सारस-नयन, इंदु-बन घनस्याम । बिज्जु हास, दारिम' दसँन, बिंबाधर अभिराम ।। अथ पुनरुक्ति-प्रकास हुँन-तच्छन जथा- एक सब्द बहु बार अँह, परै रुचिरता-अर्थ । 'पुनरुक्ति-परकास'-गुन, बरने बुद्धि समर्थ ॥ वि०-"जहाँ एक-ही शब्द अर्थ-रुचिरता उत्पन्न करता हुआ बार-बार आये वहाँ समर्थ बुद्धि वालों ने "पुनिरुक्ति-प्रकाश" गुण माना है।" उदाहरन जथा- वनि, बँनि, बँनि बँनिता चलीं, गॅनि, गनि, गनि डग देति । धुनि, धुनि, धुनि अँखियाँ जु छवि, सँनि, सँनि, सँनि सुख लेति ॥ पुनः उदाहरन जथा- मधु-मास में 'दास'जू बीस बिसें मन-मोहन भाइहैं, आइहैं, भाइहैं। उजरे इन भोंनन कों सजनी, सुख-पुंजन छाइहै, छाइहैं, छाइहै ।। अब तेरी सों एरी न सक इकंक, बिथा सब जाइहैं, जाइहै, जाइहैं। घनस्याम-प्रभा-लखिके सजनी, अँखियाँ सुख पाइहैं, पाइहैं, पाइहैं ।।* वि०-"इस गुण में यह बात अति श्रावश्यक है कि 'एक-ही शन्द (या बात) को पुनः कहना, अर्थात् एक शब्द की दो-तीन बार श्रावृत्ति करना, पर पा०-१.(३०) (सं० पु० प्र०) दारयौ..। २. (का०) (वे.) पुनरुक्तयप्रतिकास... । ३. (सु० ति०) (म० म०-दि० क०) मेरी...। ४. (३०) सखियै.... (सु० ति०) अवलोकि गुपाले दास जू ए, अखियां...। ___* सुदरी-तिलक (मा०) १० १७१, ५८४ । मनोज-मंजरी-द्वि० क. (मजा०) प्र० ६१, २२७ ।