५३० काव्य-निर्णय अथ प्रथम माधुर्ज हुँन-लच्छन जथा- अनुस्वार' औ बर्ग-जुत, सबै बरन अटवर्ग । मच्छर जॉमें मृदु परें, सो 'माधुर्ज'-निसर्ग ॥ वि०-"दासजी ने—'ट' वर्ग-रहित अन्य अनुस्वार-संयुक्त वर्गों वाले मृदु शब्दों से सुसज्जित काव्य को माधुर्य-गुण-विभूषित कहा है। अर्थात् टवर्गी शब्दों को छोड़ कर सानुस्वार अन्य वर्गी, जो रेफ ( अर्ध रकार ) और लंबे समास-से संयुक्त नहों ऐसे शब्दों-द्वारा रची गयी मधुर रचना हो, वहाँ माधुर्य गुण कहा है और यदि इस परिभाषा ( लक्षण ) को और भी अल्प रूप में कहा जाय तो इस प्रकार कह सकते हैं कि "जिस अानंद के कारण अंतःकरण द्रवीभूत हो जाय उसे उक्त गुण कहते हैं, यथा साहित्य-दर्पणे- "चित्तद्रवी भावमयो लादो माधुर्यमुच्यते ।" ____ इस माधुर्य गुण का संबंध चित्त की द्रति-पन वा पिघलना-वृत्ति से हैं, जिसके द्वारा पाठक, श्रोता और प्रेक्षक ( देखने वाला ) तीनों का हृदय द्रवीभूत हो जाता है।" अस्य उदाहरन जथा- धरें चंद्रिका-पंख सिर, बंसी पंकज-पाँनि । नंद-नॅदन खेलत सखी, बृदाबन-सुख-दाँनि ॥ वि०-"यहाँ सभी शब्द 'टवर्ग से रहित और अनुस्वार-संयुक्त हैं। समास भी लघु है और कोमल रचना है।" वेंकटेश्वर प्रेस की प्रति में यह छंद उलटा -प्रथम के स्थान पर द्वितीय और द्वितीय के स्थान पर प्रथम चरण छपा है।" अथ अोज गुँन लच्छन जथा- उद्धत अच्छर जहँ परें, स, क, ट बर्ग मिल पाई। ताहि 'भोज-गुन' कहत हैं, जे प्रबीन कविराइ॥ वि० -"जहाँ 'क', 'ट' और 'स' वर्ग के उद्धत अक्षरों का वर्ग-विन्यास हो-वे आकर मिले तो वहाँ 'श्रोज-गुण' कहा ज यगा । अर्थात्, जहाँ द्वित्त्व, संयुक्त, रेक (अर्ध र कार )-युक्त वर्णों के साथ-साथ टवी शब्दों की प्रचुरता हो वहाँ यह गुण कहा जाता है। पा०-१.( का० ) अनुस्वार-जुत, वर्ग-जुत, सबै वर्ग... (40"(प्र.) अनुस्वार- जुत वर्ण जुत, सबै वर्ग...। २. ( का०(प्र.) जाइ...। (३०) मावै उडत शब्द बहु, वर्णे संयोगी. युक्त । सकट वर्ग की अधिकई, इहै भोज-गुन उक्त ।
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