पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५४५

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काव्य निर्णय सादृश्य दिखलाया गया है, वह दूसरी उपमा में उपमान होकर नये उपमेय' को समानता प्रकट करे और फिर यह नया उपमेय तीसरी उपमा में उपमान बन कर एक और नये उपमेय को उपमित करे तथा यही क्रम से यदि और उपमाएँ हों तो- चलता रहे तो वहाँ रसनोपमा । यह व्याख्या-बा० ब्रजरनदास जी की है, यथा-- "पूर्वपूर्व समानत्वमुत्तोत्तर वस्तुतः, मेखलारचनन्यायाचदिस्याद्रशनोपमा ।" रसनोपमाँ-उदाहरन जथा- न्यारौ न होत बफारौ ज्यों धूम ते,' धूम ज्यों जात घन-घुन में हिलि । 'दास' उसास रलै जिमि पोन में, पोन ज्यों पैंठत आँधिन में पिलि ।। कोंन ज दो करै लोन कों नीर ते, नीरौ छीर में जात खरौ घिलि । त्यों मति मेरी मिली मँन मेरे में, मो मँन गौ मॅनमोहन सों मिलि ॥ अति प्रसन्न है कमल सौ, कमल मुकुर सौ बाँम । मुकुर चंद सौ चंद है, तो मुख सौ अभिरॉम ।। वि०-"दासजी के यह दोनों उदाहरण विभिन्न, अर्थात् अभिन्न-भिन्न- धर्मा रसनोपमा के है । रसनोपमा का उदाहरण काव्य-प्रमाकर (हिंदी) रच- यिता पं० जगन्नाथप्रसाद 'भानु' कृत सुंदर है, यथा-- "काव्यश्वर जग सोहै, कैसौ सोई काब्यावर, जैसौ मॉनसर सोहै सरन को अधिराज । कैसौ सोहै मॉनसर कहौ 'कवि भानु' मोसों, जैसौ सोहै द्विजराज, कैसी सोहै द्विजराज ॥ मदन • मुकर जैसौ, मदन - मुकर कैसौ, प्यारी के बदन पर जैसी रही छवि छाज । प्यारी की बदन कैसी, सुख को सदन जैसी, सुख को सदन कैसौ, जैसी सुभ राम-राज ॥" अथ रतनावली अलंकार-लच्छन जथा- मी-बस्तु-गॅनि बिदित जो,' रचि राख्यौ करतार । सो क्रम ऑन काव्य में, 'रतनाबली' प्रकार ।। पा०-१. ( का० ) (३०) (प्र०) (सं० पु० प्र०) में ..। २. ( सं० पु० प्र०) यों...। ३. (का०) (३०) (प्र.) (सं० पु० प्र०) लोन क्यों नीरमें, नौर ज्यों-छीर में जात...! ४. (स० पु० प्र०) यो...1 ५. (रा० पु. का० )...गॅन जो विदित...!