काव्य-निमय वि०-"जहाँ किसी औचित्य ( योग्यता ) के कारण किसी अनेकार्थवाची शब्द का एक अर्थ ही ग्रहण किया जाय । जैसा कि यहाँ"" द्विज शन्द के कई अर्थ होते हैं, पर यहाँ तरु-वृक्ष के कारण उसका 'विहंग' अर्थ ही उपयुक्त है। (१०) देस-बल ते 'दोहा' जथा- कहूँ देस-बल कहत हैं, एक अर्थ कवि धीर । मरु में जीबन दूरि है,' कहें जाँनियत नीर ॥. वि०-"जब कि किसी देश विशेष के कारण किसी अनेकार्थी शब्द के अर्थ विशेष का निर्णय किया जाय, जैसा उदाहरण में दासजी ने कहा है।" (११) काल-भेद ते 'दोहा' जथा- कहूँ काल ते होत है, एक अर्थ की बात । कुबले निसि-फूल्यौ कहें, कुमुद दिवस जलजात ॥ वि०-"जब कि काल (समय) प्रातः मध्याह्न, अपराह्न, सायं और रात्रि के कारण किसी अनेकार्थी शब्द का एक अर्थ निर्णय किया जाय ।" (१२) स्वर के फेरते 'दोहा' जथा- "कहूँ स्वरादिक-फेर ते, एक-हि अर्थ प्रसंग। बाजी भली सु' बाँसुरी, बाजी भलौ तुरंग॥" वि०-"जब कि स्वर के फेर से किसी विविध अर्थ-संयुक्त शब्द का प्रसंगानुसार अर्थ लिया जाय, जैसा "बाजी भली सु०...." रूप उदाहरण में 'बाजी' शब्द का।" (१३) अभिनय ते 'दोहा' जथा- कहूँ अभिनयादिकन से, एक-हि५ अरथ बिचार । इती देखियत देहरी, इते बड़े हैं बार ॥ वि०-"नहीं अभिनय-द्वारा एक ही अर्थ का विचार किया जाय, जैसा दासजी के इस दोहे के उत्तरार्ध में। पा०-१. (भा० जी०) यै। २. (प्र०-२) जाँनि...। ३. (भा० जी०) (प्र०) (३०) एकै । ४. (प्र०) न... ५. (प्र०) (३०) एकै।
- , का० प्र० (भानु) पृ० ७० 1 +, का० प्र० (भानु) पृ० ७१ 1 1, का० प्र० (भानु)
पू०७१।