पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५२८

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काव्य-निर्भय ऐसे उत्तर देना ) और "निबस प्रश्न" भी कहते हैं। अथवा कोई प्रथम, द्वितीय, तृतीय संख्या-क्रम में उत्तर-भेद करते हैं। प्रथम-उत्तर-जहाँ प्रश्न की कल्पना कर केवल अभिप्राय वैशिष्टय से उत्तर दिया जाय और उससे-ही प्रश्न का अनुमान किया जाय, द्वितीय-उत्तर वहाँ, जहाँ प्रश्न तथा उत्तर दोनों संमिलित हों और तृतीय उत्तर वहाँ, जहाँ प्रश्न में हो उत्तर मिले-निकले । अथवा अनेक प्रश्नों का एक-ही उत्तर हो......। द्वितीय उत्तर--प्रश्नोत्तर एक तथा उनके बाहुल्य से भी बनता है, पर ऐसे बाहुल्य-प्रधान प्रश्नोत्तर में दुर्जेयता होती है, यह निर्विवाद सिद्ध है । तृतीय उत्तर चित्रोत्तर का विषय है, अतः वह यहाँ वर्णनीय नहीं। कोई-कोई अाचार्य एक ही प्रश्नोत्तर में और कोई जैसा पूर्व में कहा है- प्रश्नोत्तर बाहुल्य में इस अलंकार को मानते हैं, यथा- "बाल, कहा लालो भई, बोयन-कोयन-माँहि । लाल, तिहारे रगँन की, परी हगन में छाँहि ॥" "का दुरलभ जग-"बंधु-हित", कहा सुख्ख-"सतसंग"। सुलभ कहा है "नाम-जप", दुख कह-"दुरजॅन-संग"।" पर ऐसे उदाहरणों में उत्तर वा प्रश्नोत्तर अलंकार न हो कर गूढोत्तर ही कहा जायगा।" उदाहरन जथा- कोन सिंगार है-'मोरपखा', इहि लाल' छुटे, कच कांति की जोटी। गुंज को माल कहा-'इहि तौ अनुराग गरें परयौ लै निज खोटी ।। 'दास' बड़ी-बड़ी बातें कहा करो-आपने अंग की देखौ करोटी। जाँनों नहीं ये कंचन से तिय के तन को कसिबे की कसौटी। को इत आवत-"कॉन्ह हों", कहा कॉम,-"हित-मॉन"। किन बोले-'तेरे द्वगन', साखी--"मृदु-मुसिकॉन" - पाo-2. ( का० । (३० ) ( स० पु० प्र०) बाल...| २. ( का० ) (३०) (प्र.) के...। ३. ( का०)(३०)(प्र.) (सं० पु० प्र०) के...। ४. ( का०) (३०) (प्र.). काम कहा ..। ५. (का० ) (३०) बोल्यो... (प्र०) बोलो...।

  • भा० भू० ( केडिया ) पृ० ३३२ ।