काव्य-निर्णय कोई इन फूलों की किस्मत देखना- "जिन्दगी काटों में पन कर रहगई।" . . दिल टूटने से थोड़ी-सी तकलीफ तो हुई। "लेकिन तमाम उम्र को माराम हो गया ।" नामे को पढ़ना मेरे जरा देखभाल कर। "कागज पे रख दिया है, कलेजा निकाल कर ॥" अकबर ने सुना है महले-गैरत से यही । "जीना जिल्लत से हो तो, मरना अच्छा ॥" मुझको सुना-सुना के वोह कहना किसी का हाय । "जिससे कि जी में रंज हो, उससे कलाम क्या ॥" छेकोक्ति उदाहरन जथा- मो मँन बाल हिरॉनों हुतो, सु' किते दिन तें मैं किती करी दोर है। सो ठहरयौ वो ठोड़ी के गाड़ में, देहि अजों तो बड़ौई निहोर है। 'दास' प्रतच्छ भई पन-हाँ, अलकें तब तारन दै के अंकोर है। होत दुराऐं कहा अब तो, लखि गौ 'दिल- चोर' तलास न चोर है ।। वि०-"दासजी कृत 'छेकोक्ति' का उदाहरण कुछ जचता नहीं। केवल 'दिल- चोर' वा 'दिलचोर' संधि-युक्त या विशेषण-विशेष्य-युक्त होने पर भी लक्षणं- अनुसार नहीं बनता-स्फुट नहीं होता...। छेकोक्ति के सुंदर उदाहरण कवि “जगतानंद' के उपखान-दशम ( भागवत कथा ) में मिलते हैं, यथा- . . "ठाली नॉइन मूडे-पटा" गोदी ले हरिकों जब भाजी, दरवज्जे-बाहर पति बाजी।
- गिरी खाइ के तबै पकार, लंबे पग भी हाथ - पसार ॥
पा०-१. (का० ) को...। (३०)...हिरानों हो खाकों, किते दिन ते...सं० पु० प्र०)...हिरानों है ताकों, किते-दिन ते मैं करी किती...! २. ( का०) (प्र०) (सं०. पु० प्र०) तुब...। (३०) तुम...। ३. (का०)()(प्र०) तुअ...। ४.(सं0- पु० प्र०)ले.... ५.(३०)तिल...। ६. (३)(प्र.) तिलासन चोर...।