काव्य-निर्णय जोकोक्तः स्यादातरगर्भिता।" ॥ अथ लोकोक्ति उदाहरन जथा- बीस-बिसें दस दौस में, भौमेंगे बल-बीर । नेन-मूदि नौ दिन सहो, नागरित्रब दुख-भीर ॥ वि०-“दासजी का यह उदाहरण 'कुवलयानंद' के लोकोक्ति-उदाहरण- "सहस्व कतिचिन्मासान्मीलयिस्वा विलोचने" (नेन-मूदि षट-मांस लों सहिए विरह-विषाद ) के अनुरूप है, केवल शब्दांतर के सिवा तनिक भी भेद नहीं है। साथ-ही यह कहने का मुहावरा' है, अन्य कुछ नहीं। इस लोकोक्ति के उदाहरण में नये हिंदी अलंकार-अथ प्रणेताओं ने 'नेही' कवि को निम्नलिखित सूक्ति को सबने अपनाया है, यथा- "गई फूलन-काज हों कुंजन भाज, न संग सखी जु अचानक-री। हरि भाइ गए, भजि जाँउ किने, जित-ही-तित काँटेन सों जक-री॥ कबि 'नेही' कहै प्रति काम छयौ, सुतौ मारग रोकि रखो तकरी। सुन-री सजनी, गति ऐसी भई, ज्यों-"मारनों बैल, गजी सकरी ॥" अथवा- "ये चार-हूँ और उद्यौ मुख-चंद की, चाँदनी चारु निहारि लै-री । बलि जो पै अधीन भयौ पिय-प्यारो, तौ एतौ विचार-बिचारि लैरी॥ 'कवि ठाकुर' चूकि गयौ जो गुपाल, तुही विगरी को सँम्हारि लै-री। भव रहिहै, न रहिहै यही सँमयो-"बहती नदी, पाय-पखारि लै-री ॥" न चली कछु बालची लोचन सों, हठ-मोचन के चहिनों परयौ। 'रतनाकर' बंक-विलोकन-बान, सहाए बिना सहिनों-ई परयौ । . उत ते वे गात छुबाइ चले, तब तो मैन को बहिनों-ई परयौ। भरि पाह, कराह 'सुँनों-जू-सुनों नंदलाल सों यो कहिनों-ई परयौ। ऊपर के दोनों छंद अलंकार-ग्रंथानुसार लोकोक्ति के उदाहरण और नीचे का छंद 'मुहावरा' से मजबूत है । उर्दू में मुहावरों की भरमार है, यथा- बनाऐ क्या समझ कर शाखे-गुल पर पाक्षियां अपना । । चमन में भाह, क्या रहना-'जो हो बे-मावरू रहना ।' गुंचों के मुस्कराने पै कहते हैं हँस के फूल- "अपना करो ख़याल, हमारी तो कट गई" ॥" 'पा०-१. (का० ) (३०)(प्र०).. नव दिन सहै....
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