पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५१

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१६ काव्य-निर्णय प्रकार जब अनेकार्थ वाचक शब्द के एक अर्थ का निर्णय किसी अभिन्न वस्तु के असंयोग (वियोग ) से किया जाय वहाँ उक्त अभिधा होती है।" ( ३ ) साहचर्य ते 'दोहा' जथा-- बौहोत अर्थ को एक कहुँ 'साचरज" ते जॉन । 'बेनीमाधौ" के कहें, तीरथ 'बेनी' माँन ।। . वि०-"जहां अनेकार्थी वाचक शब्द के एक अथ का निर्णय किसी महचर वस्तु की सहायता से किया जाय, जैसे 'माधौ' (माधव ) शब्द के वसंतादि कितने हो अर्थ होते हैं, पर वेणो (त्रिवेणो) के सायथं से यहाँ तीर्थराज प्रयाग ही माना जायगा ।" ( ४ ) विरोध ते 'दोहा' जथा- कहुँ 'बिरोध' ते होत है एक अर्थ को साज । - चंद-हिं जाँन परै कहें, 'राहु-प्रस्यौ' 'दुजराज ॥ वि०-"जब किसी प्रसिद्ध विरोध अथवा शत्रुता के कारण अनेकार्थी शब्द के एक ही अर्थ का निर्णय किया जाय. जैसे "दुजराज" (द्विजराज) के चंद्र और दंत-पंक्ति आदि कई अर्थ होते हैं, पर राहु के ग्रसने के कारण यहाँ चंद्र अर्थ ही लिया जायगा।" (५) अरथ-प्रकरन ते 'दोहा' जथा-- अर्थ- प्रकोरन ते कहूँ, एक अर्थ पैहचान । वृच्छ-जानिऐं दल-भरें, दल-साजें नृप जॉन ।। वि०-"जहाँ अर्थ के प्रकरण से-उसके बल से जब एक ही अर्थ जाना जाय, जैसे दल-पत्ते और मैन्य आदि ममूह को कहते हैं, अस्तु वृक्ष के ___ पा०-१. (प्र०) साहचरज । (प्र०-२) (वे०) साहचर्य । २. (प्र०) (३०) बेनी-माधव । ३. (प्र०) चंदै... (३०) चंद्र ...। ४. (प्र०) (प्र०-२) (सं० प्र०) (३०) द्विजराज । ५. (प्र०) (सं० प्र०) (३०) अरथै-प्रकरन ... (का० प्र०) अरथौ प्रकरॅन...। ___* का० प्र० (भानु) पृ० ६८ | t, का० प्र० (भानु), पृ० ६६ 1 १, का० प्र० (भानु), पृ०६६ ।