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काशी, बा. जगन्नाथदास, 'रत्नाकर, काशी, ला० भगवानदीन उपनाम- 'दीन कवि' मिश्र-बंधु (सुखदेव विहारी मिश्र, गणेश बिहारी मिश्र, कृष्ण बिहारी मिश्र) लखनऊ, पं कृष्ण बिहारी मिश्र, गधौली (सीतापुर), बा० प्रजर-स्नदास अग्रवाल काशी, डा. रसाल (रामकृष्ण शुक्ल रसाल) प्रयाग (भवसागर-विश्वविद्यालय) पं० नंद दुलारेलाल बाजपेयी (सागर-विश्वविद्यालय) पं० विश्वनाथ प्रसाद मिश्र काशी, पं. बलदेव प्रसाद मिश्र प्रयाग और उमाशकर शुक्ल इत्यादि अनेक ज्ञाताज्ञात महानुभावों ने प्रजभापा काव्य- ग्रंथों के प्रकाशन-संपादन में स्मरणीय सहयोग दिया जो भुलाया नहीं जा सकता । यह ब्रजभाषा-काव्य-प्रथों के प्रकाशन और संपादन का आदि इतिहास है, जो लीथो (शिलायंत्र) युग से चलकर-उत्पन्न होकर, टायप-युग में फल-फूज रहा है। यद्यपि ऊपर निवेदित संपादक शिरोमणियों में ग्रंथ-संपादन का स्तर जैसा होना चाहिये, वैसा तो नहीं देखा जाता, फिर भी ब्रजभाषा के अनेक कवि- ग्रंथों को, पंगु बनाकर ही सही, रक्षा अवश्य की है, यही हमारे लिये सब कुछ है कवि-संचित काव्य-निधियों की रक्षा के रूप में भाप लोगों का मूल्य कम नहीं प्राँका जा सकता।

ब्रजभाषा में रीति ग्रंथों के प्रणयन का इतिहास बहुत पुराना है । प्रसिद्ध दी-इतिहासकार पं० रामचंद्र शुक्ल के अनुसार उसका प्रारंभ'सन् १९६८ ई०' माना गया है, जब कि वह इससे कहीं अधिक दूरवर्ती है। नामकरण के साथ तद् समय के प्रथ तो अभी नहीं मिले हैं, पर उस समय की फुटकल प्राप्त रचनाओं के शब्द-सौष्ठव को देखते हुए उसकी समय-विशालता अवश्य-ही माननी पड़ेगी। अठारहवीं शती, जिसे हम भिखारीदास-काल भी कह सकते हैं, तक वह काफी विशाल और प्रौद हो चुकी थी। अमित ग्रंथ-रस्म उद्भव हो चुके

१. वर्माजी ने अत्यधिक ब्रज भाषा प्रथों का सपादन-प्रकाशन किया है। आपके मुख्य सपादित ग्रथ-'रसलीन' का रस प्रबोध, सुदरदास का सुदर शृगार, भिखारीदास का शृगार-निर्णय, केशवदास प्रभृति के नखसिख संग्रह, पद्माकर का जगतविनोद-आदि के नाम लिये जा सकते हैं। २. रत्नाकर-संपादित ग्रथ-सुजानसागर (धनानन्द-विरचित), हमीरहठ (चद्रशेषर), सुजान चरित्र (सूदन) इत्यादि । ३. दीनजी के संपादित प्रथ-कविप्रिया (केशवदास), रामचद्रिका (केशवदास), दोहावली, कवितावली (गो० तुलसी दास), विहारी सतसई, सरपचरत्न आदि ..."। ५. हिंदी नवरत्न, देव-यथावली, सूरसुषुवा-इत्यादि । ४.मतिराम यथावली ।६. नंददास-प्रथावली, भाषाभूषण (यशवंत सिंह), मीरापदावली....... ७. उद्धव शतक (रत्नाकर)14. सरसागर | ६. भूषण अथावली, घनानंद, भाषाभूषण. पचाकरपचामृत, विहारी-इत्यादि । १० भनेकार्थ और नाममंजरी (नंददास) । ११. नवस । १२. हिंदी साहित्य का इतिहास, सं० २००३ संशोधित संस्करण पृ० २३२ ।