पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४९९

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४६४ काम्य-निर्णय सुख की कहाँनी हमें. दुख को निसाँनी भई, मार भयौ'मनिल, अनिल भयो'मेह को। कुल को धरम भयौ घाबरे परॅम यहे, ___ साँबरे करम सब राबरे सनेह को। अस्य तिलक इहाँ लच्छनासक्ति ते सिगरे कवित्त में प्रतिसयोक्ति व्यंग है --"ए सब करम राबरे सँनेह के हैं'-इतनो बान (कारज-कारन एक) हेतु भलंकार दूसरी हेतु—'कारज-कारण एक' उदाहरन जथा- भाज सयाँन यहै सजनी, न कहूँ चलिबौ न कहूँ कों' चलैबौ । 'दास' यहाँ काहू नौम को लैबौर, आपनी बात को पेच-बदेवौ ।। होत यहाँ तो मरीति अबैरी, गुपाल कौ मालिन-पोर चितैबौ । अंतर-म-प्रकासक है, ये तेरौ ही लाल कों देखि लजैबौ । वि.-"हेतु अलकार से सुशोभित प्रताप कवि की यह उक्ति भी अति सुंदर है, यथा- "सुचि सीतल मंद-सुगंध-समीर, सदाँ दस-हूँ दिसि डोलत है। कल-कोकिल-चातक मोद-भरे, अनुराग हिएँ हठि खोलत है। लपटी लतिका तरु-जालँन सों, तिन पे खग-पुंज कलोलत है। चहुँ ओर सों बौनिक सौ बँनिके, बँन में बरही बहु बोलत है।" यहाँ वर्षा कारण से नायिका-द्वारा अभिसार कराना कार्य सखो को अभीष्ट है, अतएव दासजी कृत इस कारण का यही कार्य रूप प्रथम हेतु है।" अथ प्रमाँनालंकार लच्छन जथा- कहुँ प्रतच्छ, अनुमान कहुँ, कहुँ उपमान दिखाइ । कहूँ बड़ेन को बाक्य लै, अात्म-तुष्टि कहुँ पाइ । पा०-१.२. (का०) (३०) (प्र०) भए ..। ३. (क०) (वे.) (प्र०) के...। ४. (का०) (३०)(प्र०) भए...। ५. (रा० पु० नी० सी०) सबरे ... ६. (३०) (स० पु० प्र०) की...। ७. (का०) (३०) (प्र०) माँ काडू के नाम...। (स० पु० प्र०) या काहू को नाम...! ५. (का०) (३०) (प्र०) लीबी है। ६. (स० पु० प्र०) में ... १०, (का०)(३०) की.... (स० पु० प्र०) बरी गुपाल के...। ११. (३०) तेर-ई...1