पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४९४

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काम्य-निर्णय ४५६ स्वभावोक्ति का अर्थ-स्वाभाविक कथन, जिस किसी की चेष्टा या विशेषता- श्रादि का स्वाभाविक ( यथार्थतया .. उसके अनुरूप ) सत्य, चमत्कार-पूर्ण वर्णन, होता है। जब तक कहने के ढंग में कुछ विचित्रता न हो, अथवा वर्णन में कोई चमत्कार न हो, केवल ज्यों का त्यों सत्य कथन हो तो वहाँ यह अलंकार नहीं कहा जायगा। यहाँ वर्णन (अति) सुंदर, किसी की क्रिया या स्वरूप अथवा जाति- सुभावादि वर्ण्य वस्तु का विशेषता प्रकट करने वाला सत्य-सत्य हृदय को छूने वाला होना चाहिये। स्वभावोक्ति को, जैसा पूर्व में लिखा जा चुका है, श्राचार्य भट्टि से लेकर मम्मट-रुय्यकादि सभी श्राचार्यों ने अलंकार स्वरूप में स्वीकार किया है। प्राचार्य मम्मट ने काव्य-प्रकाश में औरों की अपेक्षा कुछ व्यापक लक्षण लिखते हुए कहा है-"स्वभावोक्तिस्तु डिभादेः स्वक्रिया रूप वर्णनम्" ( स्वभावोक्ति वहाँ, जहाँ बालक श्रादि की प्रात्मगत क्रिया तथा रूपादि का वर्णन हो)। अागे फिर श्राप मूल कारिका में कहते हैं-जो 'स्वक्रियारूपवर्णनं पद दिया है उसमें 'स्व' का श्रात्मगत -जो उन्हीं बालकों में पाया जाय, अन्यत्र का नहीं, से तथा 'रूप' का वर्ण और श्राकार दोनों से तात्पर्य है, यथा-"स्वयोस्तदेकाभययोः । रूपं वर्ण:- संस्थानं च।" साहित्य-दर्पण में भी-"स्वभावोक्तिर्दुरूहार्थ स्वक्रियारूप वर्णनम्" (दुरूह अर्थात् कवि मात्र से ज्ञातव्य जो बालकादि की चेष्टाएँ वा स्वरूप का वर्णन करे) स्वभावोक्ति कहा हैं। यद्यपि श्राचार्य मम्मट का लक्षण जितना व्याप्त है, उतना श्रापका-साहित्य-द्रपणकार का नहीं। फिर भी इसमें एक बात-'बालकादि की चेष्टा श्रादि...' समान रूप से कहीं हैं। श्रागे यह लक्षण घिसते-घिसते 'चंद्रा- लोक' में इस प्रकार रहा गया-"स्वभावोक्तिः स्वभावस्य जात्यादिषु च वर्णनम्" (जहाँ किसी भी जड़-चेतन्य के स्वाभाविक क्रियाओं तथा भावों का वर्णन-स्वभा. वोक्ति)। यह विशद और सुंदर लक्षण-ही आगे बढ़ ब्रज-भाषा के अलकार मंथों में मान्यता को प्राप्त हुआ. कारण पूर्व का लक्षण जो बालकों की चेष्टा-श्रादि के सीमित दायरे में बंद था, वह अब अधिक विस्तृत हो गया। अतएव स्वभा- वोक्ति का सुंदर और व्यापक लक्षण होग.-"जहाँ मनुष्यादि-जाति के किसी रमणीय स्वभाव के धर्म, क्रिया श्रादि का चमत्कारपूर्ण सुंदर वर्णन हो, वहाँ 'स्वभावोक्ति' स्वभावोक्ति को 'वक्रोक्ति-जीवित' के रचयिता 'राजानक कुतक' न मान कर, इसके मानने बालों पर 'फवती कसते हुए कहा है-"शरीर चेलंकारः किमवं कुरतेऽपरम् । शरीर-ही जब उक्त अलंकार हो जाय तब वह किसे अलंकृत