पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४८५

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काव्य-निर्णय जाता है वह न तो प्रथम वक्ता-द्वारा कही जाती है और न उसका निषेध ही किया जाता है । अर्थात् छेकापन्हुति में श्लिष्ट शब्द होते हैं तथा सत्य का गोपन वहाँ निषेध पूर्वक होता है, यहाँ ( व्याजोक्ति में ) बिना निषेध के गोपन होता है । कोई-कोई सूक्ष्म और पिहितालंकारों से इसकी प्रथक्ता बतलाते हुए. कहते हैं कि "सूक्ष्म और पिहित में क्रिया (चेष्टा ) का संबंध होता है और यहां वचन का..." ब्याजोक्ति-उदाहरन जथा- अब-हीं की है बात हों न्हात हुति, भ्रम' ते गहरें-पग जात भयो । गहि-ग्राह अथाह को लै-ही चल्यो, मँन-मोहन दूरहिं ते चितयौ । द्रति दौरि के, पौरि के 'दास' बरोरिके, छोरि के मोहिँ जियाइ लयौ। इन्हें भेटि' के भेंट हों तोहि अली, भयौ आज तो मो अबतार नयो ।।* वि०--"दासजी का यह छंद नायिका-भेद के अनुसार वर्तमान गुप्ता का उदाहरण है। कुछ ऐसा-हो उदाहरण भूत-गुप्ता का "ग्वाल कवि"-निर्मित, जो व्याजोक्ति का भी सुंदर उदाहरण है और दामजी के इस छंद से कहीं ज्यादह सुंदर है, यथा-- "तुम कैसें आई, मैं तों दधि-बेचि भावति-ही, ___नाहर निकसि भायौ बँन बजमारे हैं। वाने में न देखी, में भचक भजी चुपकी-सी, धंसी करीर की कुटी में डर भारे तें॥ 'बाल कवि' दी गई, छरा फस्यौ, माँगी चली, छिदे ए कपोल देखो प्रति उरझारे । भास-ही न जीबन की, रॉम ने बचाइ राखी, मरू के बची हों सास, धरम विहारे । पा०-१.( का० ) अचको गैहरे ..! ( ३० । ( म० पु० प्र०) (१० नि०) अचकां गहरे...। (सु. ति०) (मु० स०) औचकाँ गहरे...। २. (सं० पु०प्र०) दूर-हों...। ३.(प्र०) मरोरि...। ४. (V० नि०) (सु ति०) (सु० स०) बचाइ.... ५. (३०) (शृ० नि०) (सु. ति०) (मु० स० )...भेटती भेटि हों...

  • शृ० नि० (भि० दा० ) पृ० ३६, १०६ वर्तमान गुप्ता। सु. ति० (मा० )

पृ०६७, २२५ | सु दरी सर्वस्य (म०) पृ० ६३, ११ । ७० भा० का ना० भे० (मी०) २५७, ३२० ।