काव्य-निर्णय वि.-"युक्ति अलंकार के उदाहरण "मुग्धा-प्रवत्स्यत्पतिका" (प्रियतम- जन्य भविष्यत्वियोग को अाशंका में दुखित ) नायिका के अंतर्गत बहुत से सुंदर- सुंदर उदाहरण भरे पड़े हैं, जैसे- "जा दिन ते चलिबे की चरचा चलाई तुम, ता-दिन ते वाके पियराई तन-छाई है। 'कदै मतिरॉम' छोड़े भूषन, बसँन, पान, सखि न-सों खेलॅन - हँसन - बिसराई है। आई रितु सुरभि-सुहाई, प्रीति वाके चित्त, ऐसे में चलौ लान, राब-री बड़ाई है। सोबत न रेन, दिन-रोबत रहति बाल, बूझे ते कहति - "माइके की सुधि पाई है।" युक्ति, युक्ति-युक्त है, पर हमारी समझ से गो० तुलसीदास कृत मानस में निम्न- लिखित चौपाई इस अलंकार की सबसे सुंदर उदाहरण कही जा सकती हैं, यथा- "बहरि बदन-विधु अंचल-ढाँकी, पिय-तन चितै भोंह करि बाँकी। खंजैन-मंजु तिरीछे नैननि, निज-पति कहे तिन-हि सिय-सेंननि ॥" यह छंद दासजी ने अपने "शृगार निर्णय" में भी "प्रौढाधीरा" नायिका के उदाहरण में दिया है। युक्ति अलंकार का उदाहरण 'प्रताप' कवि का भी सुदर है, यथा- "पीतम-संग प्रबीन तिया, रस-केलि-प्रसंगन में अनुगगी। चुंबन भौ परिरंभँन के विपरीत-बिलासँन में निसि जागी॥ सेज-परी बिलसै रस-खाँनि, सबै सुख-मॉनि हिऐ रस-पागी। मोद-मई मुकतान के मंजुल, काहे ते हार-उतारन लागी॥" अथवा-- "केसर-रंग चुकै जब-हीं, तब ले कर ताही में नीर-मिलाये। धूम-पटात-सी जॉनत-हीं, तब लाल के गाल गुलाल-लगावै॥ 'माँखन' गारिके, गीतन-गाइके, गेंद-चलाइके, बाद-बढ़ाये। छोरि केबादिली होरी को मौसर जॉन घरै छिन एक न पावै ॥" युक्ति का उदाहरण मतिराम जी का भी सुंदर है, यथा- "लेन को फूल निकुंजन-माझि गयौ मिलि गोपिन को गँन भारौ । नंद-खला तिय के हिप में 'मतिराँम' हां -बान खुभायौ । गेह पनी सखियाँ सिगरी, विच सुदर • साँवरे - रूप लुभाषौ। मलिन परिकटीले कपोलॅन, कंटक कोमल पौह बुमायौ।"
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