पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४६

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काव्य-निर्णय दासजी के अनुसार ही 'अकवर'-काल के कवियों का पता निम्नलिखित छंद- द्वारा मिलता है, यथा- "पाह प्रसिद्ध पुरदर, ब्रह्म, सुधारस अमृत अमृत-बाँनीं। गोकुल, गोप, गुपाल, गनेस, गुनी, गुनसागर गंग से ग्याँनी ॥ जोध, जगन, जगे, जगदीस, जगा मग, जैत जगत है जॉनी । कोरे भकबर सों न कथी, इतने मिलिक कविता जु बखाँनी ॥" पुनः दोहा' जथा- तुलसी-गंग'दोऊ भए, सुकबिन के सरदार। इन के काव्यनि में मिली, भाषा विविध प्रकार ।।. वि०-"गो. तुलसीदास (ज० स० १५५४ वि० ) और कविवर 'गंग' ( समय १६वीं शताब्दी ) को दासजी ने इस दोहे में अच्छे कवियों में प्रमुख माना है। इन्हीं दोनों के काव्यों में भाषा का विविध प्रकार बतलाया है। विविध प्रकार की भाषा का स्पष्टीकरण यहाँ नहीं है । गो. तुलसीदास का 'रामचरितमानस' तथा कुछ अन्य ग्रंथों में "ब्रजावधी" के विविधरूप कहे जा सकते हैं। खोजने से भाषा के अन्यरूप भी आपकी रचनाओं में मिलेंगे, पर 'गंग' के काव्य में भाषा का 'विविध प्रकार' बतलाना कुछ खोज चाहता है । कारण दासजी के समय आपकी रचना का कोई विशेष प्रथ मिलता हो जो आजकल प्राप्त नहीं हैं । अाजकल तो आपके फुटकल कवित्त-सवैया विविध हस्तलिखित और मुद्रित संग्रह प्रथों में मिलते हैं, जिन्हे संगृहीत कर स्व० हरिनारायणजी पुरोहित जयपुर ने प्रकाशित किये हैं।" पुनः 'सवैया' जथा- जाँने पदारथ भूषन मूल, रसांग परांगन में मति छाकी। त्यों धुनि अर्थ सु बाक्यन लै गुन सब्द भलंकृत सों रति पाकी ।। चित्र कवित्त कर, तुक जॉन, न दोषन-पंथ कहूँ गति जाकी। उत्तम ताके कवित्त बनें, करै कीरत भारती यों अति ताकी ut पा०-१. (का० प्र०)...गंगा दो भए.।-(प्र०-२)...गंगा दै भए । २. (सं० प्र०) जिन्ह के...। ३. (का० प्र०)...की...| ४. (प्र०) सो....-(३०) स्यो...। ५. (प्र०) (३०) अरयन...। ६. (भा० जी०) (प्र०) (३०)-ताको...।

  • का० प्र०-भानु, पृ० ६७६ । 1. सू० स० -ला० भगवानदीन, पृ० ३८६, १ ।