४२४ काव्य-निर्णय दीप बिन नेह' (ो) सुगह बिन-संपत, (ो) देह-बिन देही, घुन मेह-विन दामिनी ॥ कविता सुछंद-बिन, मौन' जल-बूंद-बिन, मालतो मलिंद-बिन, होति छबि-छाँमिनी । 'दास, भगबत-बिन, संत अति व्याकुल, बसत-बिन लतिका,सुकंत-बिन कॉमिनी ।।. नेगी बिन-लोभ को, पटैत बिन-छोभ को, तपसी बिन-सोम को, सत यों ठहराईएं । गेह बिन-पंक को, सनेह विन-सक को, सदाँ बिन-कलंक को सुबंस सुख-दाईऐ ॥ विद्या बिन-दंभ सूत, आलस-बिहीन दूत, बिनाँ-कुबिसन पूत मॅन - मधि ल्याईऐ। लोम'..बिन जप-जोग, 'दास' देह-बिन-रोग, सोग-बिन भोग बड़े भागँन ते पाईऐ॥ वि.-"विनोक्ति के दो सुंदर उदाहरण "राजा टोडर मल" नवरत्न- सभा अकबर बादशाह और अमान कवि-कृत भी सुंदर है, यथा-'टोडरमल- गुन-बिन धेनु जैसें, गुरु-बिन ग्याँन जैसें, माँन -बिन दान जैसें, जल-बिन सर है। कंठ-बिन गीत जैसें, हेत-बिन प्रीत जैसे, बेस्या रस रस-रीति जैसें, फुल-बिन तर है। तार-बिन जंत्र जैसें, स्याँने बिन-मंत्र जैसे, नर-विन नारि जैसें, पूत-बिन घर है ॥ पा०-१. ( का० ) गेह श्री सनेह बिन संपत, अदेह बिन... (३०) (प्र.) (२० कु.)..नेह श्री सुमेह बिन संपनि अदेह बिन देह... (प्र.).. सुदेह-बिन देही धन...। २. (प० ऋ० ह.) मालती मलिंद बिन, सर अरबिंद-बिन होत...। ३.(र.. कु०) कोकिल...| ४. ( स० पु० प्र०) छोह को...। ५. (सं० पु० प्र०) सोह....(३०) सोमा को...। ६.(का०)(३०)(प्र०) सतायो... ७.(का०) सनेही... . (का०) (40)(प्र.) कुव्यसन...I ६.( का० ) मध्य मनल्या...। (३०) (प्र.)(० पु० प्र०) मनि मधि-मन-मध्य . । १०.(३०) लोग.... प० रि० १० (परमानंद महाने ) पृ० २८, १। २० कु. (म० भयो०) पृ० ११. है। स-निरूपण।
पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४५९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।