पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४५८

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काव्य-निर्णय ४२३ साम्य-मूलक अलंकारों के भेदाभेद-प्रधान वर्गीकरण के अंतर्गत भेद-प्रधान वर्ग में मानी गयी है । कोई-कोई इन्हें सादृश्य-गम्यमान (जिसमें साहश्य छिपा हुआ हो ) वर्ग में भी मानते हैं, पर यह वर्ग 'भेद-प्रधान वर्ग में समा जाता है। प्रतिषेध भी गूढार्थ-प्रतीति मूलक वर्ग में विभाजित किया हुश्रा मिलता है।" अथ प्रथम "सहोक्ति" उदाहरन जथा- जोग-बियोग खरौ हम पै, वौ' कूर-अकूर के साथ-हीं आए। भूख औ प्यास सों भोग-बिलास लै 'दास' वे आपने संग सिधाए । चीठी के संग बसीठी लै बाइक, ऊधौ हमें वे आज बताए । काँन्ह के संग सयाँन सखा, तुम कूबरी"-कूबर बीचि बिकाए । फूलॅन के सँग फूलि हैं रोम, परागन के सँग लाज-उड़ाइ है। पल्लब-पुज के संग अली, हियरा अनुराग के रंग रँगाई है। आयौ बसत, न कंत हितू , अब बीर-बदोंगी जो धीर-धराइ है। साथ तसैन के पातन के, तरुनीन के प्रान निपात है जाइ है ।।* वि० - "ये दोनों उदाहरण शुद्ध सहोक्ति के हैं, श्लेष-मिश्रित द्वितीय भेद के नहीं।" अथ बिनोक्ति उदाहरन जथा- सूधे सुधा-सने बोल सुहावने, सूधे निहारिबौ नेन-सुधों हैं। सधे० सरोज-बँधे-से उरोज हैं, सूधे सुधा-निधि-सौ मुख जों हैं। 'दास जू' सधे सुभाइ-सों लीन, सुधाई-भरे सिगरे अँग सो हैं। भाँबती चित्त _मावती मेरो, कहाँ ते भई'ए'सुधाई की भों हैं। देस-बिन भूपत, दिनेस-बिन पंकज, फॅनेस- बिन-मँनि, औ निसेस'३.बिन जाँमिनी। पा०-१. ( का०)(३०) (प्र०) वहि... २ (का०) (प्र.) वह...। (३०) है...। (सं० पु० प्र०) ऊधौ, वौही हमें...। ३.(०) साथ...। ४. (प्र.)...तुम्हें निज कुबरी-कूबर.... ५. (३०) कुवर...। ६. (का० ) (३०) (प्र.)(म०म०) हियरौ । ७.(३०)..बसंत री कंत....(३०)(प्र०(सं० पु० प्र०)। मं० म०) कोप निपात... ६.(का० ) (३०)(प्र०) सूधी ..। १०.( का०) (३०) (प्र.) मुद्ध...। ११. (सं० पु० प्र०) भरौ सिगरौ...। १२. (का०) (३०) मैंई * भोंहैं। १३. (प्र.रि.ह.) बिन ससि...।

  • ०म० (क. पो०) पृ० १६३ ।