काव्य-निर्णय ४११ किये च गुणक्रियाः" (जहाँ दो गुण दो क्रियाएं तथा एक गुण एक क्रिया के साथ-साथ कथन) रूप तीन भेद और कहे हैं । युगपद्या (योगपद्य-एक साथ होना) शब्द का विश्लेषण करते हुए वहाँ (काव्य-प्रकाश में ) कहा गया है कि "यह योग-पद्य (एक साथ होना) रूप समुच्चय केवल एक हो अधिकरण (श्राश्रय) वालों में, अथवा विभिन्न अधिकरण वालों में भी होता है यह ठीक नहीं, भिन्न- भिन्न श्रधिकरणों में भो समुच्चय होता है, परंतु समानाधिकरण्य और वैयधि- करण्य रूप दोनो दशात्रों में भी समुच्चय होगा, यह नियम सिद्ध नहीं होता । (दे० काव्य-प्रकाश, हिं० व्या०-साहित्य संमेलन)। समुच्चय, प्राचार्य रुद्रट से लेकर सभी अलकाराचार्यों ने स्वीकार किया है। इसलिए इसका वर्गीकरण प्रथम उभय-वास्तव और औपम्य वर्ग में, तदनंतर काव्य-न्याय रूप वाह्य-न्याय वर्ग में अथवा वाक्य-न्याय मूलक वर्ग में किया गया है। ____समुच्चय का अर्थ, एकत्रित-"एक साथ इकट्ठा होना" संस्कृत के प्राचार्य- वर्गों ने माना है। अस्तु इस व्याख्या-द्वारा किसी कार्य को सिद्ध करने के लिये एक कर्ता के विद्यमान दूसरे का भी परस्पर स्पर्धा-युक्त होकर पूर्व कार्य को सिद्ध करने के लिए एकत्रित हो जाते हैं, जो समुच्चय कहलाता है। इन प्राचार्यों ने समुच्चय, विकल्प-अलकार के विपरीत माना है और कहा है-विकल्प में समान- बल वालों की एक-ही काल में एकत्रित स्थिति असंभव है, समुचय में नहीं। समुच्चय में समान बल वालों की एकत्रित स्थिति एक काल में होती है। संस्कृत-ग्रंथों में 'समुच्चय के भेद इस प्रकार कहे गये हैं-'प्रथम' समुच्चय (किसी कार्य के करने के लिये एक साधक के होते हुए दूमरे साधकों का कथन ), द्वितीय समुच्चय ( गुण, क्रिया अथवा गुण-क्रिया दोनों का एक-ही काल में वर्णन किया जाना)। इसके बाद प्रथम समुच्चय के-'सद्योग' ( उत्तम साधकों का योग ), 'अंसद्योग' ( असत् साधकों का योग) और 'सद्-असद् योग' ( सत्- असत् दोनों साधकों का योग) तीन भेद और किये गये हैं। प्रथम कथित द्वितीय समुच्चय के भी 'गुण-समुचचय', क्रिया समुच्चय और गुण-क्रिया दोनों का समुच्चय रूप तीन भेद कहे गये हैं। इनके उदाहरण भी दिये हैं, साथ-हो 'क्रिया-समुच्चय' को 'कारक-दीपक' से पृथक बतलाते हुए कहा है कि "कारक दीपक" में भी समुच्चय की भांति अनेक क्रियाओं का कथन किया जाता है, पर वे क्रमशः (श्रागे-पीछे) होती हैं और उक्त समुच्चय में सब क्रियाएं एक साथ होती हैं। पर्याय के द्वितीय भेद में भी विविध वस्तुओं का क्रमशः एक श्राश्रय होता है, यहाँ एक साथ एकत्रित होकर । सहोक्ति में एक क्रिया में दो अर्थों का अन्वय -
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