पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४४२

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काव्य-निराय उर्दू कवियों ने भी इस बंदिश पर बहुत कुछ कहा है और जो कुछ कहा है उसमें नजाक्त है-नफासत है, जैसे- "जगाने, चुटकियाँ लेने, सताने कोंन पाता है। यह छिप कर ख्वाब में अण्लाह जाने, कोंन भाता है।" "वादे के अपने सच्चे थे, भाते वह ख्वाब में । 'नाज़िम' तुम्हीं को नींद न भायी तमाम रात ॥" "ख्वाब में उनको किसी ने रात छेदा है ज़रूर । देखते हैं गौर से मुझको बुलाकर सामने ॥" "ख्वाब में भी छिपाके मुँह पाये । उनकी शर्मो-हेजाब ने मारा ॥" अथ संभव-असंभव अलंकार-लच्छन जथा- बिन-जॉन ऐसौ भयो, 'असंभव' पहचान । जो यों होई तो होइ यों, 'संभावना' सुजॉन ।। वि.-"जहाँ विना जाने कुछ का कुछ होना वर्णन किया जाय, अथवा जहाँ ऐसी बातों का वर्णन हो जो संभव न होते हुए भी घट जाय, वहाँ “असंभव" और जहाँ यह कहा जाय कि यदि ऐसा होता तो वहाँ 'संभव' वा 'संभावना' अलंकार होता है। __ असंभ-सभव अलंकारों का सबसे प्रथम वर्णन 'चंद्रालोक' में मिलता है, वहाँ इनके लक्षण-"असभयोऽर्थ निष्पत्तावसभाव्यत्त्वर्णन" (भूत वाक्य में जो क्रिया कही जाय, उस पर संदेहात्मक वाक्य कहना - असंभव ) और "संभावनां- यदीरयं स्यादित्यूहोन्यप्रसिद्धये" (जब कुछ तर्क-वितर्क करके, यदि ऐसा हो तो ऐसा हो, यह निरूपण किया जाय तब-संभावना ) कहा है । रुद्रट, भोज, मम्मट और रुय्यकादि अलंकाराचार्यों के उत्तर-काल में इसकी सृष्टी होने से इन दोनों का वर्गीकरण भी नहीं हुश्रा है। फिर भी बाद के कुछ प्राचार्यों ने इन दोनों की और विशेष कर 'असंभव' की गणना 'विरोधमूलक' अलंकारों में की है। संभावना अलंकार का वर्णन किसी ने किया है और किसी ने नहीं, अतएव उसका कोई वर्गीकरण नहीं मिलता। असंभव का विवरण "हिंदी-अलंकार प्रयों में सेठ कन्हैयालाल पोदार, सेठ अर्जुनदास केडिया तथा बा० ब्रजरत्न दास के अलंकार-