पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४२३

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काव्य-निर्णय अथ प्रथम सँम-'जथाजोग' को उदाहरन जथा-- अंग-अंग बिराजत है उनके, इँन-हों के कनीन' को रंग-संन्यों। उन्हें भोर की भाँति बसाइबे कारन, 'दास' इन्हें कल-कंज मॅन्यों ।। लखि-री, उनके २ बस करिबे कों, इँनको उनमें गुन-जाल तँन्यों। घनस्याँम को स्याँम-सरूप अली, इँन आँखिन के अनुरूप बन्यों ॥ वि०-"प्रथम 'सम' का उदाहरण 'भारती-भूषण' में केड़िया-द्वारा दिया गया भी, सुंदर है, जैसे-- "छैल छलिया है तौ छबीली - कर फूल - छरी, जो है जमुना-जल तौ भंग-मरी-सी है। स्याँमघन हैं तौ स्यामाँ-देह-दुति-दामिनी हैं, बिरही बिहारी, जिय • जोबनि जरी-सी है। मोहन मलिंद है तो कुंद - कलिका-सी यह, ___ चंद अजचंद है तो कृत्तिका - लरी - सी है। जौ हैं बनमाली तौ बिराजै गल-माल, लाल- ता है तमाल तौ पै लतिका हरी-सी है।" रहीम और विहारी की भी कोई-कोई रचना प्रथम-"सम" की हृदयहारी कृतियाँ है, प्रथम रहीम' की जैसे- "नेन सँलोंने, अधर मधु, कहु 'रहीम' घटि कोंन । मीठो भाव लोन पै, मीठे - ऊपर लोन ॥" "नित-प्रति एकत-ही रहत, बैस-परन-मॅन एक । चैहियतु जुगल-किसोर-लखि, लोचँन जुगल मॅनेक ॥" -विहारी विहारो के इस दोहे में कोई--"नेत्रयुगल-रूप कारण से युगल-मूर्ति-दर्शन- रूप कार्य के न होने पर 'विशेषोक्ति' भी मानते हैं। परमानंदजी अपनी संस्कृत- व्याख्या-द्वारा इस दोहे में -“यदि आँखों के अनेक जोड़े हों तब-ही यह जोड़ी निरखी जा सके" इस प्रकार जोड़ी के देख सकने के लिये आँखों की अनेक जोड़ियों की संभावना से संभावनाल कार माना है (दे० संजोवन-भाष्य-पं.. पा०-१. ( का० ) (३०) (प्र.) कनीनका-रंग...। २. ( का० ) (३०)(प्र.) उनको..। ३. ( का०) (३०) कीवे-ही को.... (प्र.) ( स० पु० प्र०) कीबे-हि... ४. (का०)(प्र०) इनमें...| ५. ( का०) (३०) ही...।