पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/४२

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काव्य-निर्णय
भाषा-लच्छिन 'दोहा' जथा-

भाषा ब्रज-भाषा रुचिर, कहें सुमति' सब कोइ । मिले संस्कृत-फारिसिहुँ,' सो अति प्रघट जु होइ ।। ब्रज-मागधी मिलें अमर,' नाग जॅमन-भाषाँ नि । सैहेज पारसी हूँ मिलें, षट बिधि कहति बखानि ॥ वि०-"दासजी ने यहाँ सुदर भाषा के लक्षण में काव्य-भाषा षडविधि-युक्त मानी है, अर्थात् संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश के साथ ब्रज, मागधी तथा फारसी के सुदर संयोग से उसे उत्कृष्ट माना है। आप से पूर्व महाकवि "चंद" ने भी अपने "रासो" की भाषा के प्रति इसी प्रकार कहा है, यथा- "उक्ति धर्म विशालस्य राजनीति नवं रसम् । पडभाषा पुराणं च कुरानं कथितं मया ॥" -- पृथ्वीराज-रासो ११३६, अर्थात् संस्कृत, प्राकृत, राष्ट्रीय अपभ्रश तथा तीनों प्रदेशों-"राजस्थान, ब्रज और अवध", की तत्सामयिक प्रचलित भाषाओं के मेल से बनी भाषा ही उत्तम भाषा है।" पुनः ‘कवित्त' जथा- सूर, केसौ, मंडन. बिहारी, कालिदास, ब्रह्म, चिंतामनि, मतिराम, भूषन' से ग्याँनिएँ । लीलाधर, सेनापति, निपट, निवाज, निधि, नीलकंठ मिस्र सुखदेव, देव माँनिऐं ॥ 'पालम, रहीम, रसखाँन,' रसलीन औ मुबारक से सुमति भए कहाँ-लों बखाँनिऐं। ब्रजभाषा -हेत ब्रज-बास हू न अनुमानों, ऐसे-ऐसे कबिन हूँ की बाँनी हूँ ते जाँनिऐं। पा०-१. (प्र०) सुकवि। २. (का० प्र०) (सं० प्र०) (३०) पारस्यौ।-(ल.) फारसी...। ३. (ल.) अवर । ४. (मा० जी०) (०) सु...। ५. (सं० प्र०)...-बिहारी, कालि चितामनि, ग्रा... ६. (सं० प्र०)(३०) रसखाँन सुदराविक, अनेकनि सुमति...- (प्र०) रहीम रसखान और, सुंदर सुमति...। ७. (भा० जी०) अजभाना-हेतव्रज-लोकरीति देखी-सुमी, बहु भांति कवित...!

  • , का०प्र०-भानु पृ० ६७६ । *, संमेलन प्रयाग की प्रति में यह दोहा नहीं है।