पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३९५

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३६० काव्य-निर्णय श्री मतिरामजी का उदाहरण भी सुंदर है, यथा- गुच्छन के अवतंस लसें, सिखि-पिरछन अच्छ किरीट बनायो । पल्लब लाल सँमेत छरी, कर पल्लब-से मतिराम' सुहायो । गुंजन के उर मंजुल-हार, निकुजैन ते कढ़ि, बाहर आयो। माज को रूप लखें ब्रजराज को, भाज-ही भांखिन को फल पायौ।" अथ द्वितीय उल्लास "और के गुन ते और कों दोष" जथा- औरनँ' के गुन और कों, दोप- उलास" होत । "बारिद जग-जीबन-भरत, मरत आक के गोत ॥" बास - बगारत मालती, करि . करि सैहैज बिकास । पिय-बिहीन बँनितन' हिऐं, विथा बढ़त अनयास' ॥ वि०-"द्वितीय उल्लास "गुण से दोष की प्राप्ति के वर्णन में कन्हैया- लाल पोद्दार ने अपनी 'अलंकार-मजरी' में नीचे लिखा एक शेर भी उदाहरण स्वरूप लिखा है, जैसे- "पान खा-खा न हँस, इस नरजा तू ऐ दुश्मने-जाँ। अभी मर जाँयगे खू में लबो - दंदान कई ॥' वाकई भाव और कहने का ढंग सुदर है । द्वितीय उल्लास का यह उदाहरण बे-जोड़ है।" अथ तृतीय उल्लास--"और के दोष ते और कों गुन" जथा-- दोष और के और कों,-गुन "उल्लासै” लेखि । "रघुपति कौ बँन-बास भौ, तपसिन सुखद बिसेखि ॥" भली भई" करता कियो, कंटक-कलित' मृनाल । तुब भुजॉन-म जाँन कवि उपमाँ देति जु बाल ॥ पा०-१ (का० ) (३०) (प्र. ) और...। २. ( का० ) (३०) बनितानि-हिय । ३. (रा० पु. नी० सी०) बढ़े बिथा...। ४. (का० ) (वे.) अन्यास । ५ (प्र०) भयो। ६. (प्र०) बलित...। ७. (का०) (३०) की...। . (का०) (३०) सब ..IE. (का०) (०)(प्र०) देते बाल।