पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३८४

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यह "प्रताप कवि" कृत रचना है, "सखी की उक्ति नायिका के प्रति । यहाँ मार नायक पर पड़ रही है और पीर (दरद) सखी को हो रही है, अतएव "असंगति" है । रसकुसुमाकर के संग्रह कर्ता ने दासबी के इस छंद को 'मुग्धा- खंडिता' के उदाहरणों में संकलित किया है। हमारी दृष्टि से यह (मुग्धा-खंडिता नायिका ) का उदाहरण नहीं हो सकता, क्योंकि जब वह कहने-सुनने लगी तब उस ( नायिका ) में 'मुग्धत्व' कहां रहा, जो उसकी प्रधान शोभा का कारण है......" अथ तीसरी "असंगति"-"कारज और अरंभिए, अरु करिए आर" को उदाहरन जथा- प्रघट भए घनस्याँम तुम, जग - प्रतिपालँन-हेत । नाँहक बिथा-बढ़ाइ कें, औरॅन' को जिय लेत ।। पुनः उदाहरन जथा-- ऑनद-बीज बयौ अँखियाँन, जमाइ बिथान की जी में जई है। वेलि-बढ़ाइ५ चबाइँन जो ब्रज-धामन-धामन फैलि गई है। 'दास' दिखाइ' के तूंबर-फूल, फलै दियो ऑन' कृसॉन-मई है। प्रीति बिहारी को मालिनँ कै", इहि बारी में रीति बगारी नई है ।। अस्य तिलक इहाँ 'रूपक' को संकर भाव है। वि०-"तीनों असंगति अलंकारों का एक-ही छंद में सुंदर उदाहरण. "दूलह" कवि ने भो अति रोचक दिया है, जैसे- "अंत हेतु, भंते काज" जाँनों 'असंगति -रेन- जागे तुम, भालस हमरे तन छायौ है। पा०-१. (का०)(३०) क्यों । २.(का०) (३०) (प्र.) अवलॅन...... (स० पु. प्र.) ज्यो...। ४. ( का०) जमायो..। (३०) जमाई...। (म० म०), जमाई...। ५. ( का० )(सं० पु० प्र०) बढ़ायौ...(०) बोलि पठायो चबाई की जो,। ६.(का० ) (सं० पु० प्र०) चबाई की जो,। (प्र.) चबाई के जो। ( म० में) चाव की जो,...७. (म० म०) लगाइ के ताँबरि... (का०)...तोंबर... (३०) तांबरि.... (प्र०) बरि...। (स० पु० प्र०) तावरी...1 . (का०) (३०) फली...18 . (मं० म०)दई। (प्र०) भानक सान भई.... १०.(०) (म० म०)री,

  • म०40100) १. १०७ (वि.क.)।