काम्य-निर्णय ३२१ प्रॉनपति प्रात - ही पयाँन करौ च है 'देव', सेवा करिबे कों संग प्रॉनन - पठाँउगी ॥" "रोकहुँ जो तौ अमंगल होत, औ प्रेम-नसै जो कहों 'पिय-जाइए। जो कहों 'जाउ न', तो प्रभुता, जो कछु न कहौं तौ सँनेह-नसाइऐ॥ जो 'हरिचंद' कहों तुम्हरे-बिन, 'जोहों न' तो ये क्यों पातियाईऐ । ताते पयाँन सँमें तुम सों हम, का कहें प्यारे, हमें समझाइऐ ॥" "जाने की जिद है, जाइये, है देर किस लिये। गुजरेगी जिस तरह से, हम भी गुजार देंगे ॥" अथ द्वितीय आच्छेप रूप 'निषेधाभास' को उदाहरन जथा- आज ते नेह को नाँतौ गयौ, तुम नेम'-गयौ हों-हू' नम-गहोंगी। 'दास जू' भूलि न चाहिऐ४ मोहि, तुम्हें अब क्यों हूँ न हों हूँ चहोंगी। वा दिन मेरे प्रजंक पै सोए हो. हों बह दाब लहों प लहोंगी। माँनों भलौ कै बुरौ मँनमोहन, सेज तिहारी में सोइ रहोंगी ।।. वि०-"दासजी कथित यह उदाहरण आक्षेप द्वितीय रूप "निषेधाभास" का-"जिसमें विवक्षितार्थ का वास्तविक निषेध न हो, निषेध का आभास मात्र हो," का है । संस्कृत में इसे "निषेधाक्षेप" भी कहा जाता है। अथ तृतीय आच्छेप रूप “निज-कथुन को दून-भूषन" जथा-- तुब मुख बिमल-प्रसन्न अति, रखौ कमल-सौ फलि । नहिं नहिँ पूरन चंद-सौ, कमल कह्यौ में भूलि ॥ पुनः उदाहरन जथा -- जिय की जीवन-मूरि मॅम, वौ रॅमनी-मनीय । यै हु' कहत हों भूलि के, 'दास' वही मो जीय ।। ___पा०-१.(प्र०) नेह...। २. (प्र०) हम...। ३. (रा० पु० नी० सी०) गहेंगी...। ४. (रा० पु. नी० सी० ) चांहों हमें, तुम्हें अब क्यों-हू न हम-हूँ चहेंगी। ५. (रा० पु. नी० सी०), हम वो दाब लहें पै लहेंगी। ६.( का०) (३०) यह । ७.(का०) (प्र.) कि...। (३०) की...। ८. (३०) सैन तिहारी मैं स्वै-ही...। (रा० पु. का.) सेज तिहारीऐ । (रा० पु. नी० सी०) हम सेज तिहारिऐ सोइ रहेंगी। ६. (का०)(प्र०) वा...। १०.(का०) (३०) (प्र०) यहो.... ०नि०(भि० दा०) पृ० ३४, १९१। ।
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