३०८ कामनिर्णय दासजी का यह छंद-सिंघनी-ौ-मृगनी की.' दासबी के 'शृगारः निर्णय', परमानंद सुहाने के 'नखसिख-संग्रह' और ला० भगवानदीन के 'सूक्ति सरोवर' में नायिका की कटि-वर्णन के अंतर्गत दिया गया है । नायिका की कति के वर्णन में संस्कृत से लेकर ब्रजभाषा-साहित्य में ही नहीं, खड़ी बोली के साहित में भी बड़ी-बड़ी सुदर सूक्तियाँ कही गयी है । एक-एक क्रमशः जैसे- "देहं हेमद्युति परिहृतांभोजवृष्टिं च दृष्टि, राशीभूतभ्रमरपटलीचारुवेषं च केशम् । दृष्ट्वासयो विपुल हृदयानंदमुढेन धात्रा- सारंगाच्या किमु रचयितु विस्मृतो मध्यदेशः ॥" "सुमन में बास जैसें सु-मॅन में भाबै कैसे, 'नो' कयौ चहत सो तो ' को चहत है। सुरसरि-सूर-तनया में सरसुति जैसें, बेद के बचन-बाँचें साँचें निवहत है। परिवा के इंदु की कला ज्यों है भबर में, पर वाको भच्छ परतच्छ ना लहत है। बुद्धि-अनुमान के प्रमान परब्रह्म जैसें, ऐसें कटि छीन कवि 'मीन' कहत है।" "सिंघ न जीता लंक-सरि, हारि जीन्ह बँन-बास । तिर्हि रिस रकत-पियत फिरै, खाइ मारि के मांस ॥" "कै जान बाल की गिरह पड़ी, खोले-से होवे अमर कहीं। कैसी कल-कंजन की दिलवर, तनधारी बैठा समर कहीं। कै लीक भावई की सोहै, नभ में निश्चै का भमर कहीं। उसको दो दीन दरस होवै, जो देखै तेरी 'कमर' कहीं ॥" "मू से बारीक बताते है कमर' उस गुल की। मैं तो कहता हूँ उस गुल के 'कमर' है ही नहीं।" "वरचंद मुस्तबू में रहे, साहवे-निगाह । देखा जो दूरवीं से मपाई नजर कमर' ॥"
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