पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३३८

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काव्य-निर्णय 'दास' जू है जो सके तो करै, बदलें उपकार के लाख'-करोरें। काज हितू के लगें तन-प्रान, जो' दाँन ते नेक नहीं मुख-मोरें॥ वि-"दासजी-द्वारा प्रस्तुत यह उदाहरण प्रस्तुत-प्रशंसांतर्गत तृतीय, अथवा संस्कृताचार्यों-द्वारा वर्णित चतुर्थ भेद “सामान्य-निबंधना" (सामान्य अप्रस्तुत-द्वारा विशेष प्रस्तुत की बात स्पष्ट करना ) का है । माननी नायिका-प्रति सखी वा दूती की प्रार्थना-संयुक्त उक्ति-द्वारा विरह-संतप्त नायक से मिलने रूप विशेष का स्पष्टी करण है। दासजी के इस छंद के छल-स्वरूप कुछ ऐसी-ही उक्ति "जैनदी महम्मद" की याद आ गयी है, जैसे- "अनरस-ौसर भी रूसे में जु भाव कॉम, ता सों जो दुराबै दीठि ऐसौ को कठोर है। हाथ - हू धरेंगे, अंकमाल - हू भरेंगे, ___ मन-माँने सो करेंगे, या में तुम्हें का मरोर है ॥ "जैनदी मुहम्मद" न मॉनि के हमारी कयौ, राखौ वाही भोर तौ चले न कछु जोर है। पीठि है तिहारी, पै हमारी है हमारे जॉनि, काहे ते ! रिसाने तें हमारी होत भोर है।" बिसेस मुख ( मिस) सामान्य को उदाहरन जथा-- 'दास' परसपर लखौ, [न छोर के नीर मिलें सरसात है। नीर बिकावत आपने मोल जहाँ-जहाँ जाइकेंभाप बिकात है। पाषक जारँन छोर लगे, तब नीर जरावत आपनों गात है। नीर की पीर-निबारिबे कारन, छीर घरी ही-घरी उफनात है ।। वि०-"दासजी का यह छंद आपके अनुसार अप्रस्तुत-प्रशंसा के अंतर्गत चतुर्थ और संस्कृत अलंकाराचाों -द्वारा वर्णित तृतीय भेद “विशेष-निबंधना" जिसमें अप्रस्तुत विशेषार्थ-जो बात किसी खास से संबंध रखतो हो, के वर्णन- द्वारा प्रस्तुत सामान्यार्थ (जो बात सर्व साधारण से संबंध रखती हो) को सूचित किया जाय, का है।" पा०-१. ( का० ) ( का०)(३०) (प्र.) आयु...। २. (का० ) (३०) के... ३. ( का० ) (३०) ह... (प्र०) मन...। ४. (का०) नीरो चावन...। ५. का०) जह ...। ३. (३०) लग्यो...