पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/३३३

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२६८ काव्य-निर्णय और सदृश का सदृश से बोध कराने के कारण होते हैं। संस्कृत-साहित्य में इन्हें पूर्वापर-क्रम से-कारण-निबंधना, कार्य-निबंधना, विशेष-निबंधना, सामान्य- निबंधना और सारूप्य-निबंधना, जिसे "अन्योक्ति" भी कहते हैं, नाम दिये हैं। अप्रस्तुत-प्रशंसा में प्रस्तुत वर्णन के लिये अप्रस्तुत का कथन किया जात है- प्रसंग-गत बात को न कह कर अप्रासंगिक रात के वर्णन-द्वारा प्रसंग-गत वात का बोध कराया जाता है । यह अप्रस्तुत-द्वारा प्रस्तुत का बोध किसी संबंध के विना नहीं होता, इसलिये अप्रस्तुत-द्वारा प्रस्तुत-बोध के लिये संबंध तीन प्रकार के- (सामान्य-विशेध संबंध, कार्य-कारण संबंध और सारूप्य संबंध) कहे गये हैं। संस्कृत "अलंकार-सर्वस्वकार" का कहना है कि "सामान्य-विशेष संबंध" अर्थातर- न्यास-नामक अलंकार में भी होता है, किंतु वहाँ इन दोनों (सामान्य विशेष) का कथन शब्द-द्वारा स्पष्ट किया जाता है और "अप्रस्तुत-प्रशंसा" में इन दोनों में से एक का। संस्कृत-अलंकार-ग्रंथों में अप्ररत-प्रशंसा के और भो-इन पाँचों के अत- रिक्त भो, भेद किये हैं, जैसे प्रथम-"कारण, कार्य, सारूप, विशेष और मामान्य- निबंधनादि"...। सारूप्य-निबंधना के-"श्लेष-हेतुक, सादृश्य-मात्र, श्लिष्ट-वि- शेषण" । इसी प्रकार सादृश्य-मात्र-"अध्यारोप से, अनध्यारोप से और अंशारोप से कही गयी है । अतएव अप्रस्तुत प्रशंसा के 'ग्यारह भेद होते हैं, किंतु मुख्यतः तीन (सामान्य-विशेष, कार्य-कारण और सारूप्य) अथवा पाँच (सामान्य, विशेष, कार्य, कारण और सारूप्य अथवा-सामान्य, विशेष, हेतु, कार्य और सारूप्य. निबंधना) भेद-ही माने हैं । ये सारे भेद काव्य-प्रकाश-कती श्रीमम्मट मान्य हैं, जिन्हें परिस्कृत रूप में उन्होंने उद्भट से लिया था। भामह और उद्भट ने कहने को तो अप्रस्तुत की प्रशंसा में प्रस्तुत के अभिधान-द्वारा किसी नये कारणों को गवेपणा नहीं की, अपितु वही घिसे-पिटे मार्ग को अपनाया, जिसे पूर्व के श्राचार्य प्रशस्त कर गये थे । हाँ, उद्भट के टोकाकार 'प्रतिहारेदुराज' ने 'काव्यालंकार-सार- संग्रह-वृत्ति' में प्रस्तुत-वर्णन से प्रस्तुत के प्रत्यायन में एक नये संबंध का उल्लेख अवश्य किया है । जो आगे चलकर प्रशस्त बना-अप्रस्तुत के भेदों का कारण बना । वह संबंध क्या था ? उसका विशद निरूपण 'अलंकार सर्वस्त्र'-कार ने किया । जो तीन प्रकार का था-"....त्रिविधश्च संबंध:-सामान्यविशेष भावः सारूप्यं चेति" वचनात् ।" बाद में इसी त्रिसूत्रो संबंध को पकड़ कर प्राचार्य रुय्यक ने 'अरस्तुत-प्रशंसा' के-१, सामान्यविशेष-भावरूप के संबंध में, २, कार्य- कारणभावरूप संबंध में, ३, सारूप्य संबंध में तीन भेद और इन तीनों के उपभेद क्रमशः-१, सामान्य से विशेष को प्रतीति में, विशेष से सामान को प्रतीति में,