काव्य-निर्णय २६५ वि०--दासजी ने प्रथम उल्लेखालंकार के इस उदाहरण को अपने 'शृगार-निर्णय' में भी 'स्वकीया के माधुर्य-वर्णन' में दिया है। आपसे पूर्व 'मतिराम' जी ने भी अपने 'रस-राज' में स्वकीया के वर्णन में कहा है - "जॉनति सौति अँनीति है, जॉनति सखी सु नीति । गरुजन जाँनत लाज है, पीतम जाँनत प्रीति ॥" यों तो स्वकीया-नायिका के वर्णन का उदाहरण कवि 'मंचित' का भी हृदय- हारी है, जैसे- "तुम नाँव लिखावती हो हम पै, हम नाँव कहा कहि लीजिऐ जू । अब नाव चलै सिगरे जल में, थल में न चले कहा कीजिए जू ॥ कबि 'मंचित' औसर जौ अंकती, सकती नहि, हाँ पर जीजिए जू। हम तो अपनों 'बर' पूजती हैं, सपने हूँ न 'पीपर' पूजिऐ जू ॥" छंद यह भी सुंदर है, साहित्य में वेजोड़ है, पर 'दासजी' के 'पीतम- प्रीतिमई अँनुमा... के बराबर नहीं, फिर भी- "अपनी तो आशकी का किस्सा ये मुख्तसिर है। हम जा मिले खुदा से, दिलबर बदल-बदल कर ॥" पुनः उदाहरन 'एक में बहु गुँन जथा- साधुन को सुख-दाँनि है, दुरजॅन-गँन दुख-दाँनि'। बैरिंन बिम-हाँनि प्रद, राँम तिहारौ पनि । वि०- "जैसा कि पूर्व लिखा जा चुका है कि उल्लेख-भ्रांति-मिश्रित, रूपक मिश्रित और रूपक में भी 'फल' तथा 'हेतु' मिश्रित के अनंतर इसकी 'ध्वनि' भी होती है। उपमा-मिश्रित उल्लेख भी मिलता है, जैसे- "अवनी की भाल-सी, सुबाल-सी दिनेस जॉनी, लाल-सी है काँन्ह करी बाल सुख-थाल-सी । नरकॅन कों हाल-सी, बिहाल-सी करैया भई, धरमॅन कों उद्धत सुदाल-सी बिसाल-सी। 'बाल' कवि भक्तन को सुर-तर-जाल-सी है, सुंदर रसाल-सो, कुकरमन को भाल-सो। दृतन कों साल-सी, जु चित्त कों हुसाल-सी है, ___ जॅम को जंजाल-सी, कराल काल-ब्याल-सी ॥" पा०-१. (३०) दाम | २. (प्र०) विप्रन... । ३. (प्र०) दाँन । ४. (३०) नाम...।
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काव्य-निर्णय